Book Title: Aptavani 04
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 187
________________ (४०) वाणी का स्वरूप ३१७ ३१८ आप्तवाणी-४ मानोगे तब हल आएगा। इस जगत् को जीतने का दूसरा कोई उपाय नहीं है। रिकॉर्ड कहा, तब फिर निर्दोष हो गए! ___ अज्ञान दशा में ऐसा लगता है कि 'यह मुझे ऐसा कहता रहता है, वह मुझसे किस तरह सहन होगा?' तब तक रोग कम नहीं होता। हमें सहन करना ही नहीं है। मात्र समझ लेने की ज़रूरत है कि यह रिकॉर्ड है। यदि आप वाणी को रिकॉर्ड-स्वरूप नहीं मानोगे तो आपकी वाणी वैसी ही निकलेगी। इसलिए कार्य-कारण, कार्य-कारण चलता ही रहेगा। वाणी तो पूरा थर्मामीटर है। यह विज्ञान ऐसा है कि निवेडा ला देता है। कोई हमें झिड़के, हम पर हँसे तो हम भी हँसने लगें, हम जानते हैं कि यह रिकॉर्ड ऐसी बज रही है। सामनेवाला बोलेगा किस तरह? वही लटू है, फिर। इस बेचारे पर तो दया रखने जैसी है! प्रश्नकर्ता : इतना उस समय लक्ष्य में नहीं रहता है। दादाश्री : पहले तो 'वाणी रिकॉर्ड है' ऐसा पक्का करो। वाणी रिकॉर्ड है, रिकॉर्ड है, रिकॉर्ड है.... 'स्थूल संयोग, सूक्ष्म संयोग और वाणी के संयोग पर हैं और पराधीन है।' वाणी बोलनेवाले के हाथ में भी नहीं है और सुननेवाले के हाथ में भी नहीं है। वाणी के संयोग पर हैं और पराधीन हैं। ऐसी उड़ती हुई आतशबाजियों में कौन हाथ डाले? किसी भी बात दो मिनिट से अधिक खिंचे तो वहाँ से भगवान चले जाते हैं ! बात उलझी की भगवान चले जाते हैं। बातचीत करने में हर्ज नहीं है, परन्तु उसे पकड़ना नहीं चाहिए। पकड़ा तो फिर बोझा बढ़ जाता है। वाणी, वह अहंकार का स्वरूप वाणी मात्र खुला अहंकार है। जो बोलते हैं, जितना बोलते हैं, वह सभी खुला अहंकार है। सिर्फ 'ज्ञानी पुरुष' जो स्यादवाद वाणी बोलते हैं, उस समय उनका अहंकार नहीं होता। परन्तु वे जब दूसरा कुछ बोलते हैं तो उनका भी अहंकार ही निकलता है। उसे निकलता हुआ अहंकार, डिस्चार्ज अहंकार कहा है। प्रश्नकर्ता : अर्थात् बिना अहंकार की वाणी निकलती है न? दादाश्री : वह निर्जीव अहंकार कहलाता है। वाणी में सजीव अहंकार हो, तो वह वाणी सामनेवाले को चोट पहुँचाएगी। हमारी वाणी निर्ममत्व और निअहंकारी होती है, इसलिए सभी को आनंद आता है। वाणी पर से कितने परिमाण में और कैसा अहंकार चार्ज हुआ था वह पता चलता है। बिना स्यादवाद के जितने बोल हैं, वह सब अहंकार ही है। आचरण में यों तो बहुत अहंकार नहीं दिखता है। वह तो कभी विवाह में गए हों, तब छाती फूल जाती है, तभी दिखता है। _ 'मैं कैसा बोला' वह वाणी का परिग्रह है। मैं बोल रहा हूँ', वह जो भान है, उससे नया बीज डलता है। प्रश्नकर्ता : साहजिक वाणी अर्थात् क्या? दादाश्री : जिसमें किंचित् मात्र अहंकार नहीं है वह। इस वाणी का एक सेकन्ड के लिए भी मैं मालिक नहीं बनता है. इसलिए हमारी वाणी साहजिक वाणी है। आत्मा सचराचर है। सचर में तीन चर हैं। आचार, विचार और उच्चार। ये तीन यदि नोर्मेलिटी में हों तो हर्ज नहीं है। ये तीन नोर्मेलिटी में हों तो मनुष्य की सुगंध आती ही है। मनुष्य की सबसे बड़ी परीक्षा कौन-सी? उसके आचार पर से परीक्षा मत करना। उसके विचार पर से परीक्षा मत करना। उसकी वाणी पर से परीक्षा करना! वीतराग वाणी के बिना, नहीं कोई उपाय भगवान से किसीने पूछा, 'मोक्ष जाने का साधन क्या है?' तब उन्होंने कहा कि, 'वीतराग वाणी के बिना और कोई उपाय नहीं है।' वह वाणी सिद्ध वाणी कहलाती है, सामनेवाले में उग निकलती है। प्रश्नकर्ता : वीतराग वाणी का प्रमाण क्या है?

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