Book Title: Aptavani 04
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 188
________________ (४०) वाणी का स्वरूप दादाश्री : वीतराग वाणी अर्थात् हर एक का आत्मा कबूल करता ही है, हर एक धर्म के लोग उसे कबूल करते ही हैं। सिर्फ कोई टेढ़ा हो, वही कबूल नहीं करता। वीतराग वाणी आत्मरंजन करवानेवाली होती है, दूसरी सभी वाणियाँ मनोरंजन करवाती हैं। वीतराग वाणी सुनते ही बिल्कुल नई ही लगती है, अपूर्व लगती है। अपूर्व अर्थात् पूर्व में कभी भी सुनी नहीं हो, पढ़ी नहीं हो, वैसी बात होती है। वीतराग के वचन किसे कहते हैं कि जिसे वादी-प्रतिवादी दोनों क़बूल करें। प्रतिवादी भी क़बूल करे कि, ‘बात सही है, पर हमें यह बात पुसाती नहीं ।' वाणी का रिकॉर्डिंग ३१९ प्रश्नकर्ता : आप कहते हैं कि यह मैं नहीं बोलता हूँ, परन्तु टेपरिकॉर्ड बोल रहा है, तो वह किस तरह, वह समझाइए । दादाश्री : उसके गुणधर्म पर से। इसमें आत्मा के गुणधर्म नहीं हैं। पुद्गल के भी गुणधर्म नहीं हैं। वह पुद्गल की अवस्था है। वाणी की प्रेरणा से टेप होती है। अहंकार खुद उसे टेप नहीं करता। मात्र उसकी प्रेरणा से टेप होता है। अंदर अहंकार प्रेरणा देता है, कोर्ट में ऐसे बोलना है, वैसे बोलना है, उसके बाद वैसी ही रिकॉर्ड बजती है। प्रश्नकर्ता : आपकी वाणी कब टेप हुई होगी? दादाश्री : पिछले जन्म में टेप हुई थी, वह इस जन्म में बोली जा रही है। प्रश्नकर्ता: वाणी, वह सूक्ष्म में से स्थूल हुआ, वह है ? दादाश्री : हाँ, सूक्ष्म में से स्थूल हुआ है। प्रश्नकर्ता: शुरूआत में सूक्ष्म कहाँ से खड़ा हुआ? दादाश्री : वह तो उस स्थूल में से वापिस सूक्ष्म उत्पन्न होता है। स्थूल हो उसमें राग-द्वेष होने से वापिस फिर नया सूक्ष्म उत्पन्न होता है। यदि एक ही जन्म वीतराग रहा तो खत्म हो गया सबकुछ ! परन्तु वापिस फिर बीज डालता ही रहता है। आप्तवाणी-४ प्रश्नकर्ता: आप जो बोलते हैं, उस भाषा को समाधि भाषा नहीं कह सकते ? ३२० दादाश्री : आपको समाधि भाषा कहना हो तो समाधि भाषा कहो, स्यादवाद कहना हो तो स्यादवाद है। हमारी भाषा किसीको भी दुःखदायी नहीं होती, सुखदायी हो जाती है हर एक के लिए। यह वाणी हमारी मालिकी की है ही नहीं। अहंकार संपूर्ण शून्य हो जाए, तब रिकॉर्ड शुद्ध हो जाती है। हमें ज्ञान हो जाने के बाद हमारी रिकॉर्ड शुद्ध हो गई। प्रश्नकर्ता : वाणी रिकॉर्ड है, ऐसा कोई कब कह सकता है? दादाश्री : जब मुँह पर भावाभाव नहीं दिखें, तब वाणी का मालिकीपन छूट गया और वहीं पर अपना 'एन्ड' आता है ! वाणी का 'चार्ज पोइन्ट' प्रश्नकर्ता : ये सारी डिस्चार्ज टेप है, तो नई टेप किस तरह से बनाएँ? दादाश्री : ये सारी बातें करते हो, उसके पीछे-पीछे नई टेप बनती रहती है। वह भाव से टेप होती है। जैसा 'हमारा' भाव हो, उस अनुसार टेप हो जाता है। मेरा भाव बोलने में कैसा है? 'मुझे आपका अपमान करना है' तो वैसा टेप हो जाएगा, 'मान देना है और प्रेम से बरताव करना है' तो वैसा टेप हो जाएगा। अर्थात् भाव पर से टेप हो जाता है। प्रश्नकर्ता: भाव डालें, तब नया तैयार होता है ? दादाश्री : हाँ और क्या, भाव डलें तब नया टेप होता है। फिर बदलने जाएँ तो कुछ नहीं होगा। यह वाणी, पुद्गल का धर्म नहीं है, यह औपचारिक वस्तु है। यानी पिछले जन्म के जो भाव हैं, गत भाव हैं, वे अभी भीतर उदय में आते हैं और उसी अनुसार तुरन्त ही टेप हो जाता हैं और शब्द निकलते हैं। यह काम बहुत स्पीडी हो जाता है। यह आश्चर्य है! यह वाणी निकलती है, उसमें मूल भाव नहीं हैं, गत भाव हैं। गत भाव

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