Book Title: Aptavani 04
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 177
________________ (३८) 'स्व' में ही स्वस्थता सुख इस संसार में कैसा है? कि दुःख पड़े उसे भी भूल जाता है, आए उसे भी भूल जाता है, बचपन में बैर बाँधा उसे भी भूल जाता है। फिर साथ में बैठकर चाय पीते हैं, वापिस सबकुछ भूल जाते हैं। परन्तु जिस समय जो अवस्था उत्पन्न हुई, उस अवस्था में एकाकार होकर हस्ताक्षर कर देता है। यह हस्ताक्षर किया हुआ फिर मिटता नहीं है। इसलिए ये हस्ताक्षर होते हैं उनका हर्ज है। लोग बात-बात में हस्ताक्षर कर देते हैं। यों ही दबाव डालते जाते हैं, उसमें भी हस्ताक्षर हो जाते हैं। अरे अपनी बेटी कोई उठाकर ले जाए तो उस समय भी हस्ताक्षर नहीं करने चाहिए। लोग अवस्था में ही सारा चित्रण कर देते हैं, मार डालने का भी चित्रण कर देते हैं! २९७ अवस्था : पर्याय दादाश्री मनुष्य की कितनी अवस्थाएँ होंगी? प्रश्नकर्ता: बाल्यावस्था, युवावस्था, प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था । दादाश्री : चार ही अवस्थाएँ हैं? मरण अवस्था नहीं कहलाती ? प्रश्नकर्ता: वह फुलपोइन्ट हुआ । दादाश्री : वह भी अवस्था कहलाती है। गर्भ में आया वह गर्भावस्था हुई। उससे पहले मरणावस्था थी । अर्थात् अवस्थाओं का पूरा चक्कर चलता ही रहता है। आपको तो चार ही अवस्थाएँ लगती हैं न? परन्तु यह सब पाँच-पाँच मिनिट में बदलता रहता है। घड़ीभर में घर के विचार आते हैं, वे दो या तीन मिनिट रहते हैं और वापिस दूसरा विचार आता है। वे सभी अवस्थाएँ बदलती रहती हैं। ये तो बड़ी-बड़ी अवस्थाओं को नाम दिया है । परन्तु इन सारी अवस्थाओं में ही जी रहा है। 'ऑल दीज़ आर टेम्परेरी एडजस्टमेन्ट्स।' प्रश्नकर्ता: अभी हम तो अवस्था में ही हैं। दादाश्री : वे अवस्थाएँ फिर समाधानी नहीं होतीं। सभी अवस्थाओं में निःशंक समाधान रहे, वह ज्ञान कहलाता है। अपना ज्ञान कैसा है कि आप्तवाणी-४ हर एक अवस्थाओं में नि:शंक समाधान ही रहता है। यह तो जेब कट जाए तो भी डिप्रेस हो जाता है और कोई फूल चढ़ाए तो टाइट हो जाता है। २९८ प्रश्नकर्ता: अवस्था और पर्याय क्या हैं? दादाश्री : सारा सापेक्ष ज्ञान अवस्था का ज्ञान है। पर्याय बहुत बारीक, सूक्ष्म वस्तु है और अवस्था मोटी वस्तु है। पाँच इन्द्रियों से अनुभव में आएँ, वे सभी अवस्थाएँ कहलाती हैं और पर्याय ज्ञान से समझ में आ सकते हैं। हर एक वस्तु अवस्थावाली है। यह पंखा है, वह मूल स्वरूप से पंखा है और अभी उसकी चलने की अवस्था है और फिर बंद रहने की अवस्था होगी । अवस्था विनाशी है और मूल स्वरूप तत्वस्वरूप है, वह अविनाशी है। हर एक अवस्था जाने के लिए ही आती है। ये जितनी भी अवस्थाएँ उत्पन्न होती हैं, खराब या अच्छी, शाता वेदनीय या अशाता वेदनीय, परन्तु वे जाने के लिए आती हैं। अवस्थाएँ क्या कहती हैं कि, 'आप मुक्त हो जाओ।' वहाँ हम उपयोगपूर्वक रहें, तो बिल्कुल शुद्ध होकर मुक्त हो जाएँगे। वर्ना वैसा दाग़वाला फिर से आएगा, तो धोना तो हमें ही पड़ेगा न? ܀܀܀܀܀

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