Book Title: Aptavani 04
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 180
________________ (80) वाणी का स्वरूप वाणी आत्मा का गुण नहीं है दादाश्री : यह बोल रहा है, वह कौन बोल रहा है? प्रश्नकर्ता: आप, दादा भगवान बोल रहे हैं। दादाश्री : मैं खुद नहीं बोलता हूँ। मेरी बोलने की शक्ति ही नहीं है न! यह तो ओरिजिनल टेपरिकॉर्ड बोल रहा है। उस पर से दूसरे टेपरिकॉर्ड में रिकॉर्ड करना हो तो कर सकते हैं, तीसरा कर सकते हैं, चौथा कर सकते हैं। और तुझे तो ऐसा ही है न कि, 'मैं खुद बोल रहा हूँ।' खुद बोलता है इसीलिए वह पजल में है और मैं पज़ल को सोल्व करके बैठा हूँ। तू बोलता है, उसका अहंकार करता है कि मैं बोलता हूँ । बाकी तेरा भी टेपरिकॉर्ड ही बोलता है। आत्मा बोल सके वैसा है ही नहीं। आत्मा में वाणी नाम का गुणधर्म ही नहीं है। शब्द आत्मा का गुणधर्म नहीं है और पुद्गल का भी गुणधर्म नहीं है। यदि उसका वह गुण होता तो हमेशा के लिए होता । पर इसका तो नाश हो जाता है। वास्तव में शब्द पुद्गल का पर्याय है। वह पुद्गल की अवस्था है। दो परमाणु टकराएँ तो आवाज़ उत्पन्न होती है। इस गाड़ी का होर्न ऐसे दबाए तो क्या होगा? वाणी निकलेगी। प्रश्नकर्ता: ऐसे दबाने से जो वाणी निकलती है वह तो यांत्रिक वाणी कहलाती है, परन्तु ज्ञानी की वाणी यांत्रिक वाणी नहीं निकली है न? दादाश्री : हमारी वाणी टेपरिकॉर्ड है और आपकी वाणी टेपरिकॉर्ड ३०४ है। मात्र 'ज्ञानी' की वाणी स्यादवाद होती है। आप्तवाणी-४ प्रश्नकर्ता: स्यादवाद, वह चेतनवाणी कहलाती है? दादाश्री : वाणी चेतन हो ही नहीं सकती, फिर वह हमारी हो या आपकी। हाँ, हमारी वाणी संपूर्ण शुद्ध चेतन को स्पर्श करके निकलती है, इसलए चेतन जैसी भासित होती है। प्रश्नकर्ता: 'वाणी जड़ है' ऐसा कह सकते हैं क्या? दादाश्री : 'वाणी जड़ है' ऐसा कह सकते हैं, परन्तु चेतन है वैसा तो नहीं ही कह सकते। गाड़ी का होर्न दबाएँ तो वह बजता है या नहीं बजता? ऐसे दबाया तो अंदर जो परमाणु थे वे भागदौड़ मचा देते हैं, एकदूसरे से टकराते हैं, उससे आवाज़ होती है यह सारी । बाजे में से कैसा निकलता है? वैसे ही, इस बाजे में से घिस घिसकर ही निकलता है सारा । यह सब मिकेनिकल है। आत्मा खुद परमात्मा स्वरूप है। स्याद्वाद वाणी प्रश्नकर्ता : आपकी वाणी, 'ज्ञानी' की वाणी कैसी कहलाती है? दादाश्री : स्यादवाद वाणी, वह अनेकांत कहलाती है। प्रश्नकर्ता: स्यादवाद अर्थात् क्या? दादाश्री : किसी भी धर्म का किंचित् मात्र प्रमाण नहीं दुभे, वैसी वाणी। इस वाणी को वैष्णव, जैन, श्वेतांबर, दिगंबर, स्थानकवासी, पारसी, मुस्लिम, सभी एक्सेप्ट करते हैं। यह एकांतिक नहीं है, अनेकांत है इसमें। प्रश्नकर्ता इसे निराग्रही कह सकते हैं? दादाश्री : हाँ, कह सकते हैं। इसमें किसी भी प्रकार का आग्रह नहीं होता। प्रश्नकर्ता: निराग्रही वाणी के लिए आपको सोचकर बोलना पड़ता है या नहीं?

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