Book Title: Aptavani 04
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 164
________________ २७२ आप्तवाणी-४ (३६) भाव, भाव्य और भावक भावक ही भाव का कर्ता प्रश्नकर्ता : भाव करवानेवाला कौन है? वह आत्मा करता है? दादाश्री : अंदर 'भावक' हैं, वे भाव करवाते हैं। आत्मा भाव नहीं करता है। लोग भावकर्म को भूतावेष समझते हैं, वास्तव में भाव करवानेवाले अंदर बैठे हैं। आत्मा कभी भी भाव करता ही नहीं। प्रश्नकर्ता : वे भावक कौन हैं? दादाश्री : वह सिर्फ भावक नहीं है। क्रोधक है, क्रोध करवानेवाला। लोभक है, लोभ करवानेवाला। निंदक है, नहीं करनी हो फिर भी वह निंदा करवाता है। इसमें आत्मा कुछ भी नहीं करता। यदि आत्मा भाव करे तो उसकी क्या दशा हो? तब तो वह खत्म ही हो गया न? ये भाव करवानेवाले दूसरे हैं। उनका नाम भावक है। भावक भाव करवाते हैं। उस घडी 'आत्मा' भाव्य हो जाता है, 'उसे' वह अच्छा लगता है। खुद के स्वरूप का भान नहीं है इसलिए ऐसा असर हो जाता है। भाव में एकाकार हो, तो भाव्य 'महीला भावके भाव्य भळे तो, चितरामण न थाय ज छे स्तो।' - नवनीत भीतर भाव होते हैं उनके अंदर भाव्य मिल जाता है। उससे नया चित्रण होता है। आत्मा भाव्य है और भीतर भावक भाव करवाते हैं। वे भाव होते हैं, उसमें क्या आपत्ति है? भाव्य भावों में एकाकार नहीं हो और देखता ही रहे कि, 'अरे! अंदर के भावक ऐसे भी भाव करवाते हैं!' भावक भले ही कैसे भी भाव करवाए, उन्हें 'हम' देखते रहें तो हमें बंधन नहीं है। यह अंतिम साइन्स है। भावक का स्वरूप प्रश्नकर्ता : ऐसा किस तरह समझ में आए कि भावक ने यह भाव करवाया? जरा विस्तार से समझाइए। दादाश्री : हम मुंबई की बस्ती में रह रहे हों और एकाएक बाहर जाना पड़े और रेगिस्तान आ जाएँ, जहाँ कोई पेड़ नहीं मिले, छाया नहीं मिले, वहाँ पर ऐसे भाव होते हैं कि, 'कहाँ बैठेंगे और कहाँ ठंडक मिलेगी, कहाँ आसरा लेंगे?' वे भाव अंदर के भावक करवाते हैं। वे सब अंदर ही बैठे हैं। और इस मोक्षपंथ पर पूरा ही जगत् चल ही रहा है। यह तो पूरा प्रवाह ही है और सभी जीव प्रवाह के रूप में चल ही रहे हैं। उस रास्ते पर जाते हुए तरह-तरह के भावक आते हैं। प्रश्नकर्ता : उसका अर्थ ऐसा हुआ कि वह शाता-अशाता (देह का सुख परिणाम-देह का दु:ख परिणाम) वेदनीय हुई? दादाश्री : नहीं, नहीं। शाता-अशाता वेदनीय नहीं. वेदनीय तो वेदनीय ही कहलाता है। और ये तो भावक हैं। तरह-तरह के भाव करवाते हैं। हमें भय नहीं लगाना हो, हम निर्भय हों, परन्तु यों साँप को जाते हुए देखा तो तुरन्त ही भय का भाव करवाते हैं। करवाते हैं या नहीं करवाते? प्रश्नकर्ता : करवाते हैं। तभी तो वह विकल्प कहलाता है? दादाश्री : नहीं। विकल्प भी नहीं कहलाता। साँप जाए और उसमें तन्मयाकार हुआ तो वह भय का भाव करवाता है। वह भय का भावक भावक का आधार, संसारीज्ञान यह 'सांसारिक ज्ञान' है, वह भावक करवाएँ, ऐसा ज्ञान है। यदि 'मूल

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