Book Title: Aptavani 04
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 162
________________ (३५) कर्म की थियरी २६७ २६८ आप्तवाणी-४ निष्काम कर्म अर्थात् उसके आगे के परिणाम की इच्छा किए बिना करते जाना। कृष्ण भगवान ने बहुत सुंदर चीज़ दी है, परन्तु किसीसे वह हो नहीं सकता न? मनुष्य का सामर्थ्य ही नहीं है न! इस निष्काम कर्म को यथार्थ रूप से समझना मुश्किल है। इसीलिए तो कृष्ण भगवान ने कहा था कि मेरी गीता का सूक्ष्मतम अर्थ समझनेवाला कोई एकाध ही होगा! प्रश्नकर्ता : निष्काम भाव से कर्म करें तो कर्म नहीं बंधेगे न? 'निष्काम कर्म' किस तरह किए जाते हैं? प्रश्नकर्ता : पुनर्जन्म होता है, वह आसक्ति का परिणाम है या कर्म के परिणाम से है? दादाश्री : कर्म के परिणाम से आसक्ति रहती है और आसक्ति से पुनर्जन्म होता है। आसक्ति, वह स्टेपिंग है। प्रश्नकर्ता : निष्काम कर्म करें फिर भी पुनर्जन्म होता है? दादाश्री : निष्काम कर्म करो फिर भी पुनर्जन्म बंद हो जाए वैसा नहीं है। वह तो स्वरूपज्ञान हो जाए, तभी पुनर्जन्म रुकता है। प्रश्नकर्ता : निष्काम कर्म में किस तरह कर्म बंधते हैं? दादाश्री : 'मैं चंदूभाई हूँ' करके निष्काम कर्म करने जाओ तो कर्म का बंधन ही है। निष्काम कर्म करने से ही यह संसार अच्छी तरह चलता है। वास्तव में निष्काम कर्म 'स्वयं कौन है?' वह नक्की हुए बिना हो ही नहीं सकता। जब तक क्रोध-मान-माया-लोभ हैं, तब तक निष्काम कर्म किस तरह हो सकता है? खुद ही मान लेता है कि 'मैं यह निष्काम कर्म कर रहा हूँ', जब कि वास्तव में उसका कर्ता कोई और ही है। जिस-जिस प्रकार की क्रियाएँ होती हैं वे सब डिस्चार्ज ही हैं। 'मैं निष्काम कर्म करता हूँ' ऐसा मानता है, वही सारा बंधन है। निष्काम कर्म का कर्ता है, तब तक बंधन दादाश्री : निष्काम भाव से कर्म करो, परन्तु 'आप चंदूभाई ही हो' और 'मैं चंदूभाई हूँ' वह बिलीफ़ है, तब तक निष्काम भाव से कर्म करोगे तो उसका पुण्य बंधेगा। कर्म तो बंधेगा ही। कर्ता हुआ कि कर्मबंधन हुआ। प्रश्नकर्ता : निष्कामी किस तरह हुआ जा सकता है? दादाश्री : परिणाम का विचार किए बिना काम करते जाओ। साहब मुझे गुस्सा करेंगे, डाँटेंगे, ऐसे विचार किए बिना काम करे जाओ। परीक्षा देने का विचार किया हो तो फिर 'पास हुआ जाएगा या नहीं, पास हुआ जाएगा या नहीं' ऐसे विचार किए बिना परीक्षा देते जाओ। कृष्ण भगवान की एक भी बात नहीं समझे और ऊपर से कहते हैं कि कृष्ण लीलावाले थे! अरे, आप लीलावाले या कृष्ण लीलावाले? कृष्ण तो वासुदेव थे, नर में से नारायण हुए थे! आत्मा, अनादि से शुद्ध ही! वीतरागों ने कहा है कि कर्म और आत्मा दोनों अनादि से हैं। यानी उसकी कोई आदि नहीं हुई, इसलिए कर्म के आधार पर ही भाव उत्पन्न होते हैं और भाव के आधार पर ये कर्म उत्पन्न होते हैं और ऐसा निरंतर चलता ही रहता है। आत्मा वहीं के वहीं रहता है। करना, करवाना और अनुमोदन करना प्रश्नकर्ता : करना, करवाना और अनुमोदन करना उसमें क्या फर्क है। कृष्ण भगवान ने लोगों को दूसरा रास्ता बताया कि जिसे करने से भौतिक सुख मिलते हैं। निष्काम कर्म किसे कहा जाता है? अपने घर की आमदनी आती है, जमीन की आती है, उसके अलावा यह छापाखाना लगाया उसमें से मिलेगा। इस तरह, बारह महीने में बीस-पच्चीस हजार मिलेंगे, ऐसा मानकर करने जाए और फिर पाँच हजार मिलें तो लगता है कि बीस हजार का नुकसान हो गया। और धारणा ही नहीं रखी हो तो?

Loading...

Page Navigation
1 ... 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191