Book Title: Aptavani 04
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 161
________________ (३५) कर्म की थियरी २६५ २६६ आप्तवाणी-४ कर्मवाले को कर्मफल देकर ऊर्ध्वगति में ले जाती है, जब कि शातिर हो वह नहीं पकड़ा जाता। इसलिए वह उसकी अधोगति में जाने की निशानी विकल्प होते हैं। यह मैं हूँ, यह मैं हूँ', उससे रोंग बिलीफ़ खड़ी होती है और वही कर्मबंधन है। जैसे कि दर्पण में देखने से तुरन्त ही फोटो आ जाता है, वैसे ही परमाणु सक्रिय होने के कारण जैसे ही विकल्प हुआ कि तुरन्त ही वैसे सभी परमाणु उत्पन्न हो जाते हैं। मूल परमाणु 'तत्व स्वरूप' हैं। फिर जब मिलते हैं तब अवस्थावाले हो जाते हैं। ये सभी सक्रिय के चमत्कार हैं। आत्मा को यह पुद्गल तत्व ही उलझाता है। उसकी सक्रियता ही उलझाती है। पुद्गल की सक्रियता ऐसी है कि स्वयं अजीव है फिर भी जीव जैसा भासित होता है। जैसे कि यह चिड़िया खुद के प्रतिबिंब को चोंच मारती है, वैसे! गाढ़ कर्मों से हल प्रश्नकर्ता : गाढ़ कर्म होते हैं, उन्हीं के कारण हमें दु:ख भुगतना पड़ता है? गाढ़ कर्म अर्थात् क्या? कुछ कर्म तो यों ही उड़ जाते हैं। कुछ कर्म तो पछतावा करने से उड़ जाते हैं। और जो पछतावा करने के बावजूद भी भोगने ही पड़ें, उन्हें गाढ़ कर्म कहा है, उन्हें भोगना ही पड़ता है। जैन उन्हें निकाचित कर्म कहते हैं। किसीने हम पर थूका हो और उस पर पानी डालें, तो तुरन्त ही धुल जाता है। और किसीने ऐसा थूका हो कि साबुन से घिसते रहें, धोते रहें, तो भी नहीं जाता। अत्यंत गाढ़ कर्म होता है। प्रश्नकर्ता : 'समभाव से निकाल' करने का दृढ़ निश्चय होने के बावजूद झगड़ा खड़ा ही रहता है वह किसलिए? दादाश्री : अपने ही कर्म किए हुए हैं, इसलिए अपनी ही भूल है। किसी अन्य का दोष इस जगत् में है ही नहीं। दूसरे तो निमित्त मात्र हैं। दु:ख आपका है और सामनेवाले निमित्त के हाथों दिया जा रहा है। ससुर की मृत्यु की चिट्ठी पोस्टमेन देकर जाए, उसमें पोस्टमेन का क्या दोष? प्रश्नकर्ता : गाढ़ कर्म किसे कहा जाता है? दादाश्री : मन-वचन-काया की पूर्ण एकाग्रता से करे या जिसमें दूसरे विरोधाभासी भाव नहीं हों, उनसे भयंकर गाढ़ कर्म बंधते हैं। यहाँ' पर आत्मार्थ किए हुए हों वैसे गाढ़ कर्म दो या तीन जन्मों में छुड़वाते हैं और संसार के गाढ़ कर्म तो परिपक्व होने में बहुत समय लेते हैं। इसलिए तो यह संसार खड़ा रहा है न! कोई सीधा व्यक्ति नया-नया जेब काटने जाएगा तो पकड़ा जाएगा, क्योंकि उसका कर्म तुरन्त विपाक हो जाता है और इस कर्म से वह छूट जाता है। जब कि शातिर चोर पकड़ा ही नहीं जाता। अब लोग तो जो पहले पकड़ा गया, उसे गुनहगार कहेंगे। परन्तु कुदरत तेरे फेवर में है। हल्के दादाश्री: कितनी जगह पर ऐसा होता है? सौ-एक जगह पर? प्रश्नकर्ता : एक ही जगह पर होता है। दादाश्री : तो वह निकाचित कर्म है। वह निकाचित कर्म किससे धुलता है? आलोचना, प्रतिक्रमण और प्रत्याख्यान से। उससे कर्म हल्का हो जाता है। उसके बाद ज्ञाता-दृष्टा रहा जाता है। उसके लिए तो निरंतर प्रतिक्रमण करना पड़ता है। जितने फोर्स से निकाचित हुआ हो, उतने ही फोर्सवाले प्रतिक्रमण से वह धुलता है। प्रश्नकर्ता : ये निकाचित कर्म हैं, उनके सामने पुरुषार्थ किस तरह करना चाहिए? दादाश्री : उनमें अत्यंत जागृति रखनी पड़ती है। फिसलन हो वहाँ पर कैसे जागृत रहते हो? जंगल में बाघ-भेड़िये दिखें, वहाँ पर कितनी जागृति रहती है? वैसी ही जागृति इसमें रहे, तभी उसमें से छूटा जा सकता

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