Book Title: Aptavani 04
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 145
________________ (३२) टी.वी. की आदतें २३३ बजे भोजन करना हो तो क्या करोगे? वैसी समझ होनी चाहिए न ! ___टाइम पास या जीवन व्यर्थ गँवाया? इस हिन्दुस्तान देश में तो आठ आने खो गए हों, उसके लिए आठ घंटे तक ढूंढते रहें, वैसे भी लोग हैं ! इसलिए हरकोई अपनी समझ के अनुसार समय का उपयोग करता है। यह मनुष्य देह बहुत मुश्किल से मिला है। बहुत क़ीमती है यह देह, परन्तु जैसी समझ होती है, वैसे उसका उपयोग करते हैं। समझ के अनुसार उपयोग करते हैं न? यह जो करते हो उसे हम गलत है' ऐसा नहीं कहते। गलत तो इस दुनिया में कुछ होता ही नहीं। परन्तु उसमें टाइम बिगड़ता है न? वेस्ट ऑफ टाइम है। समझ के अभाव के कारण किसी समय मनुष्यत्व प्राप्त हुआ हो, वह भी छिन जाता है और चार पैर, छह पैर, आठ पैरोंवाला हो जाता है। भटकता रहता है और सारा समय मिट्टी में मिल जाता है, व्यर्थ चला जाता है। (३३) लोभ की अटकण परसत्ता, वहाँ लोभ क्या? प्रश्नकर्ता : मुझे लोभ की गाँठ है, तो क्या करूँ? दादाश्री : आप बोलना कि, 'व्यवस्थित' में जो हो वह भले हो और न हो तो भले हो। लोभ से प्राप्ति या नुकसान? प्रश्नकर्ता : लोभ की गाँठ कब फूटती है? दादाश्री : निन्यानवे इकट्ठे हो जाएँ तब। करोड़पति सेठ हों, फिर भी उन्हें लोभ नहीं हो ऐसा होता है कभी! लोभी एकांगी होता है। उसे मान की बहुत उठापटक नहीं होती। मानी को तो अपमान करे तो परेशान हो जाए। और लोभी तो कहता है, 'आज हमें तो दो सौ मिले, भले ही वह गालियाँ देकर गया!' मान और क्रोध हो तब तक लोभी नहीं कहलाता। यह लोभ की तो बुरी आदत पड़ चुकी होती है। लोभी को शुरूआत में पाँच-दस वर्ष तक धन बढ़ा हुआ लगता है, परन्तु फिर नुकसान ही होता है। और जिनका गठन प्रामाण्य सहित है उसे तो कोई कमी नहीं पड़ती। परन्तु जब कुदरत पलटे तब तो सभी का टूट जाता है। परन्तु इतना ज़रूर है कि जो प्रामाण्य सहित है उसे जरा भय कम लगता है। तृप्ति, आत्मज्ञान के बिना नहीं है लोभ का प्रतिपक्षी शब्द संतोष है। पूर्वजन्म में कुछ किया हुआ हो, उससे उसे संतोष रहता है। इस दुनिया का ज्ञान भी थोड़ा-बहुत समझ गया

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