Book Title: Aptavani 04
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 147
________________ (३४) लगाम छोड़ दो २३७ २३८ आप्तवाणी-४ हो गए हैं ! इसलिए ही तो श्री कृष्ण भगवान ने अर्जुन से कहा कि तू अंदर बैठ और रथ चलाने का काम मुझे सौंप दे। श्री कृष्ण ने लगाम पकड़ी तब कहीं जाकर अर्जुन की गाड़ी सीधी चली! हम आपको हफ्ते में एक दिन लगाम छोड़ देने को कहते हैं। शायद कभी भूलचूक हो जाए तो 'दादा, यह फिर से लगाम पकड़ ली, उसके लिए माफ़ी माँगता हूँ और अब नहीं पकडूंगा', ऐसा कहकर फिर लगाम फिर से छोड़ देना। शुरूआत में भूल होगी, प्रेक्टिस होने में ज़रा देर लगेगी, फिर दुसरी, तीसरी बार करेक्टनेस आ जाएगी। परन्तु उससे आगे बढ़ने के लिए, उससे आगे का प्रोग्राम देखना हो तो 'चंदूभाई क्या बोलते हैं, उसे देखते रहना है कि यह करेक्ट है या जागृति है और तब से ही कल्याणकारी है। ___ अंदर मशीनरी को ढीली नहीं छोड़ना है। हमें उस पर देखरेख रखनी है कि कहाँ-कहाँ घिस रहा है, क्या हुआ है, किसके साथ वाणी कठोर निकली। बोले, उसमें हर्ज नहीं है, हमें 'देखते' रहना है कि ओहोहो! चंदूभाई कठोरता से बोले। प्रश्नकर्ता : परन्तु जब तक नहीं बोला जाए तब तक अच्छा है न? नहीं?' 'ज्ञानी' का कैसा प्रयोग! हम 'ज्ञानियों का प्रयोग कैसा होता है कि हरएक क्रिया 'हम' देखते हैं। इसलिए इस वाणी को मैं रिकॉर्ड कहता हूँ न! यह रिकॉर्ड बोल रही है उसे देखता रहता हूँ कि क्या रिकॉर्ड बज रही है और क्या नहीं ! और जगत् तन्मयाकार हो जाता है। संपूर्ण निर्तन्मयाकार रहे उसे केवलज्ञान कहा दादाश्री : 'बोलना, नहीं बोलना' वह अपने हाथ में नहीं रहा अब। आप तो बड़े जनरल मेनेजर हो, इसलिए आपको समझाऊँ तो आप तुरन्त समझ जाते हो। 'चार्ज-डिस्चार्ज' का साइन्स यह डिस्चार्ज किसे कहते हैं? एक मोटर है, वह चाबी लगाने से चलती है, वह चाबी लगाते समय उसे चार्ज कहा जाता है। फिर उसे डिस्चार्ज की तरह रखें, तब वह फिर अपनी सत्ता में रहेगी क्या? प्रश्नकर्ता: नहीं। जगत् देखता है वैसे ये अज्ञानी भी देखते हैं परन्तु उनका देखा हुआ काम में नहीं आएगा। क्योंकि उनका बेसमेन्ट (आधार) अहंकार है। 'मैं चंदूलाल हूँ' वह उसका बेसमेन्ट है। और अपना' बेसमेन्ट 'मैं शुद्धात्मा हूँ' है। इसलिए अपना देखा हुआ केवलज्ञान के अंश में जाता है। जितने अंश तक हमने देखा, उतने अंश तक हमने अपने आप को अलग देखा, वाणी को अलग देखा, ये चंदूभाई क्या कर रहे हैं वह देखा, उतने अंश तक केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। हमें कोई गालियाँ दे तो वह भी हमारे ज्ञान में ही होता है, यह रिकॉर्ड क्या बोल रही है, वह मेरे ज्ञान में ही होता है। रिकॉर्ड गलत बोली हो तो मेरे ज्ञान में ही होता है। हमें बिल्कुल जागृति रहती है और संपूर्ण जागृति - वह केवलज्ञान है। व्यवहार में लोगों को व्यवहारिक जागृति रहती है, वह तो अहंकार के मारे रहती है। परन्तु यह तो शुद्धात्मा होने के बाद की जागृति कहलाती है। यह अंश केवलज्ञान की दादाश्री : फिर वह अपनी सत्ता में नहीं रहती। जितनी चाबी घुमाई होगी उतनी ही चलेगी। आधी घुमाई होगी तो आधी चलेगी और एक चौथाई भाग घुमाई होगी तो उतनी ही चलेगी। और पूरी चाबी घुमाई होगी तो पूरी जाएगी। उसे हम रोक नहीं सकते। इसे डिस्चार्ज कहा जाता है। वैसे ही यह सारी वाणी डिस्चार्ज हो रही है। तीन बेटरियाँ डिस्चार्ज हो रही हैं। वाणी की, वर्तन की और मन की। आपकी इच्छा नहीं हो तो भी विचार निरंतर डिस्चार्ज होते ही रहते हैं। पसंद हों या पसंद नहीं हों, परन्तु विचार तो निरंतर डिस्चार्ज होते ही रहेंगे। एक तरफ ये तीन बेटरियाँ डिस्चार्ज होती हैं और नई तीन बेटरियाँ चार्ज होती ही रहती हैं, नया मन तैयार होता रहता है, नई वाणी रिकॉर्ड होती ही रहती है। जब तक खद को स्वरूप का ज्ञान नहीं है, कोई बेसमेन्ट नहीं है, तब तक फिर नई बेटरियाँ चार्ज होती रहती हैं। और फिर वे डिस्चार्ज होती रहती हैं। अर्थात्

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