Book Title: Aptavani 04
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 154
________________ २५१ २५२ आप्तवाणी-४ है। इस अक्रम विज्ञान के कारण निरंतर शुद्ध उपयोग में रहा जा सके वैसा (३५) कर्म की थियरी प्रश्नकर्ता : आश्रव किस तरह होता है? दादाश्री : मन में खराब विचार आएँ, वह उदयभाव कहलाता है। उस विचार में आत्मा तन्मयाकार हो गया तो उसे आश्रव हुआ कहा जाता है। यदि उस अतिक्रमण का तुरन्त ही प्रतिक्रमण हो जाए तो वह मिट जाता है और प्रतिक्रमण नहीं हो तो कर्मबंधन हो जाता है। एक ही जन्म बेकार जाए तो कोई हर्ज नहीं, परन्तु यह तो दूसरे सौ जन्मों का बंधन बाँध लेता है, उसका हर्ज है। प्रश्नकर्ता : संवर अर्थात् क्या? दादाश्री : संवर अर्थात् चार्ज होना बंद हो जाए वह । 'मैं चंदूलाल हूँ' वह भान है, तब तक आश्रव और बंध (कर्मबंधन) दोनों चलते रहते हैं और 'मैं शुद्धात्मा हूँ' वह ध्यान रहा तब संवर रहता है। आपको 'मैं शुद्धात्मा हूँ' का ध्यान कितने समय तक रहता है? प्रश्नकर्ता : आपके ज्ञान देने के बाद निरंतर रहता है। दादाश्री : इसलिए अब आपको बंध नहीं होता। संवर रहता है और पहले के आश्रव की निर्जरा (कर्म का अस्त होना) होती रहती है। अब नया बंध नहीं होता, कर्म निर्जरा तो जीव-मात्र को होती ही रहती है। स्वरूप का ज्ञान नहीं हो, फिर भी निर्जरा होती है और साथ-साथ बंध भी होता है। और स्वरूपज्ञान के बाद सिर्फ निर्जरा ही होती रहती है। दूसरे शब्दों में चार्ज होना बंद हो जाता है, इसलिए सिर्फ डिस्चार्ज ही बाकी रहता है। जैसे भाव से बंध पडे थे, वैसे भावों से निर्जरा होती है। सिर्फ इतना ही है कि आपको निर्जरा के समय संवर रहता है, अबंध (बंधन रहित) परिणाम रहता है और दूसरों को बंध पड़ते हैं। शुद्ध उपयोगी को एक भी कर्म नहीं बंधता। प्रश्नकर्ता : एक ही समय में बंध का छेदन हो सकता है? दादाश्री : हाँ, हो सकता है। शुद्ध उपयोग के कारण हो सकता प्रश्नकर्ता : वास्तविक तपश्चर्या कौन-सी? कर्म की निर्जरा भगवान महावीर ने बताई है, वह क्या है? दादाश्री : जब तक संवर नहीं हो, तब तक सकाम (मोक्ष हेतु के लिए) निर्जरा नहीं होती। संवर हो तो सकाम निर्जरा होती रहती है। वह तो गायों-भैंसों सभी को अकाम निर्जरा होती ही रहती है। संवर उत्पन्न हो तो ही सकाम निर्जरा होती है। प्रश्नकर्ता : बंध और अनुबंध क्या हैं वह समझाइए। दादाश्री : अनुबंध से हमें कर्म उदय में आते हैं। कविराज और आप मिले, वह अनुबंध से मिले। और अब उस घडी वापिस बंध होता है। इसलिए जोखिम कहाँ है, वह समझ लेना है। प्रश्नकर्ता : बंध और अनुबंध किस कारण से होते हैं? दादाश्री : 'मैं चंदूलाल हूँ, इसका कर्ता हूँ', उस कारण से। प्रश्नकर्ता : उससे बंध होता है या अनुबंध? दादाश्री : अनुबंध होता है। प्रश्नकर्ता : तो बंध किस तरह होता है? दादाश्री : अनुबंध हो तब वही की वही पुरानी परंपरा चलती रहती है। कर्त्तापद रहे तो फिर से बंध होता है। और उसमें यदि बदलाव हो गया और 'मैं शुद्धात्मा हूँ' और कर्ता 'व्यवस्थित' है, वह समझ में आ गया तो बंध नहीं होता। अनुबंध है, फिर भी बंध नहीं होता। शुभाशुभ का थर्मामीटर प्रश्नकर्ता : शुभ कर्म और अशुभ कर्म पहचानने का थर्मामीटर कौन-सा है?

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