Book Title: Aptavani 04
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 113
________________ (२१) तपश्चर्या का हेतु १६९ १७० आप्तवाणी-४ विभाग सच बचा है, दूसरा सभी ध्वस्त हो गया है। प्रश्नकर्ता : आयंबिल में ये जो विधियाँ करते हैं, मालाएँ फेरते हैं, वह सब ठीक है? प्रश्नकर्ता : पाँच कर्मेन्द्रियों, पाँच ज्ञानेन्द्रियों का तो समझ में आया पर मन का क्या दादा? वह तो भ्रमण करता ही है न? दादाश्री : भले ही भ्रमण करे। हमें उसे आहार नहीं देना है, उसे निराहारी रखना है। फिर वह उछलकूद करे या बैठा रहे, पर हमें उसे आहार नहीं देना है। हाथों को आहार नहीं देना है. आँखों को आहार नहीं देना है, उस दिन बैठे रहना है। फिर पैरों को आहार नहीं देना है, पुस्तक लेकर नहीं बैठना है और 'दादा, दादा' बोलते रहना है। वह भी मुँह से नहीं बोलना है, मन में 'दादा' का स्मरण चलता ही रहे। ऐसे यदि एक ग्यारस करें तो इकट्ठा फल मिल जाएगा। यह तो ग्यारस करे तब भी मौरैया के लड्डू, फिर घी की परियाँ, कढ़ी- अलग-अलग प्रकार की सब्जियाँ, तो बल्कि उस दिन अधिक खा लेता है। दादाश्री: आयंबिल का और उसका कोई लेना-देना नहीं है। वह फिर अलग चीज़ है। आयंबिल अर्थात् क्या कि एक बार में एक ही धान खाना और भगवान के मंत्र जपते रहना, वही। आयंबिल अर्थात् मंत्र नहीं जपता हो और (एक धान) एक ही समय खाए तो भी वह आयंबिल कहलाता है। वह तो कोई भी कर सकता है। एक धान खाकर रहे, वह तो शरीर का बहुत बड़ा तप है। उससे शरीर के सभी प्रकार के पोइजन, सभी द्रव्य जलकर नष्ट हो जाते हैं, वह सबसे अच्छा है। यह तो तीर्थकर महाराजों की साइन्टिफिक खोज है ! इसलिए जैनों से कहा है कि आप इतने तो भाग्यशाली हो कि यह आयंबिल आपके यहाँ बचा है। परन्तु अभी तक एक धान खाते हैं और उसका शरीर अच्छा रहता है। आयंबिल से चमड़ी के कुछ रोग मिट जाते हैं। कोढ़ के लिए भी वह लाभदायक प्रश्नकर्ता : तप करे, उपवास करे, आयंबिल करे, उससे क्या होता दादाश्री : उससे शरीर शुद्ध होता है और मन की शुद्धि होती है। जरा वाणी भी अच्छी होती है और कभी वाणी बिगड़ भी जाती है। अच्छा भोजन करने के बाद बोलने का कहे तो बोलेगा नहीं। और भूखे पेट हो तो जलन निकालता है! आयंबिल : एक साइन्टिफिक प्रयोग प्रश्नकर्ता : यह आयंबिल जो किया जाता है, वह भगवान महावीर के समय से है या कब से है? दादाश्री : आयंबिल तो साइन्स है। वह भगवान ऋषभदेव के समय से है। वह आत्मधर्म के हेतु के लिए नहीं है, शरीरधर्म के हेतु के लिए है। वह शरीर को अच्छा रखने के लिए है। जिसके शरीर में जहरीले द्रव्य हों या फिर शरीर स्वस्थ नहीं हो, वह आयंबिल करे। वह पद्धतिपूर्वक होना चाहिए। एक ही वस्तु, एक ही धान खाते हैं, दूसरा धान नहीं खाते। आयंबिल बहुत ही सच कहा है। तीर्थंकर भगवान के महल में 'यह' पूरा प्रश्नकर्ता : बहुत लोग आयंबिल वर्षों तक करते हैं, उससे क्या फायदा होता है? दादाश्री : आयंबिल कुछ समय तक करें तो ही फायदा होता है, बहुत लम्बे काल तक करें तो फिर नुकसान करता है। शरीर में दसरे द्रव्य, विटामिनों की कमी हो जाती है। सबकुछ नोर्मेलिटी में चाहिए। उपवास में उपयोग प्रश्नकर्ता : उपवास तीन दिन, नौ दिन, एक महीना, तीन महीनों के किए जाते हैं, वह क्या है? दादाश्री : उपवास अच्छी वस्तु है, पर उपवास तो, जिसने बहुत पकवान खाए हों, उसके लिए उपवास होता है। ये बेचारे कंट्रोल का अनाज खाकर पड़े रहते हैं, उनके लिए कैसा उपवास? उपवास करने को गलत

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