Book Title: Aptavani 04
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 140
________________ (२९) चिंता : समता २२३ विज्ञान, वह तृप्ति ही लानेवाला है। लोग कहते हैं, 'मैं खाता हूँ।' अरे, भूख लगी है उसे बुझा रहा है न? यह पानी की प्यास अच्छी परन्तु लक्ष्मी की प्यास भयंकर कहलाती है! उसकी तृष्णा किसी भी पानी से नहीं बुझती। यह इच्छा पूरी होती ही नहीं। संतोष होता है, परन्तु तृप्ति नहीं होती। संतोष साइकोलोजिकल परिणाम है, वह टिकता नहीं है। साधनों में तृप्ति माननी, वह मनोविज्ञान है और साध्य में तृप्ति माननी, वह आत्मविज्ञान है। (३०) संयम परिणाम यथार्थ संयम किसे कहते हैं? बाह्य संयम को भगवान ने संयम नहीं कहा है। वह तो उदयाधीन है। उदयाधीन संयम को 'मैंने संयम रखा' कहें, वह भ्रांति है। प्रश्नकर्ता : सच्चे अर्थ में संयम परिणाम किसे कहा जाता है? दादाश्री: पर-परिणति उत्पन्न ही नहीं हो, वह संपूर्ण संयम कहा जाता है। और वृत्तियाँ अपने घर की तरफ वापिस मुड़ने लगीं। अंशरूप में शुरूआत हुई उसे संयम कहते है। संयम परिणाम समकित के बाद होता विषयों के संयम को संयम नहीं कहते। क्रोध-मान-माया-लोभ के संयम को संयम परिणाम कहते हैं। बाकी यह त्याग है, वह तो वस्तुओं का त्याग है, लक्ष्मी का त्याग है, विषयों का त्याग है, उसमें तो ना नहीं कह सकते। परन्तु उसे त्याग कह सकते हैं, भगवान की भाषा का संयम नहीं कह सकते। देह के संयम को संयम नहीं कह सकते, वह उदयाधीन है। पूर्वप्रारब्धाधीन है। जब कि संयमित मन पुरुषार्थ के अधीन है। भयंकर विषम परिस्थितियों में संयम रहना चाहिए। एक बहन आए थी। उन्होंने मुझे कहा, 'दादा, रात को मेरे पति ने मुझे एक तमाचा मारा।' तब मैंने उसे पछा, 'तने फिर क्या कहा?' तब वह बोली, 'मैंने दूसरा गाल आगे किया।' मैंने पूछा, 'उस समय तेरे भीतर परिणाम कैसे थे?' तब वे बोलीं, 'बिल्कुल शांत, कोई खराब विचार नहीं आया था। आपका ज्ञान हाज़िर हो गया।'

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