Book Title: Aptavani 04
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 132
________________ २०८ आप्तवाणी-४ (२६) स्मृति - राग-द्वेषाधीन २०७ बीमार हो वही प्रियजन याद आते हैं, अरे, तू किसलिए याद आया? अर्थात् स्मृति ही दुःख देती है। प्रश्नकर्ता : परन्तु फिर ऐसी शंका होती है कि जगत् विस्मृत रहे तो सेल्सटैक्स, इन्कमटैक्स के केस का निकाल किस तरह करेंगे? उसमें मुसीबत पड़ेगी न? दादाश्री : वैसा नहीं है। जगत् विस्मृत रहे और संसार के काम हों, ऐसा है। बल्कि बहुत अच्छी तरह, सहज रूप से हों, वैसा है। ज्ञानी की स्मृति यह स्मति ही पीड़ा उत्पन्न करती है। यह ज्ञान होने से पहले मुझे बहुत ही स्मृति थी, ज़बरदस्त स्मृति थी, वह मुझे बहुत पीड़ा देती थी, रात को सोने भी नहीं देती थी। उसका हिसाब निकाला कि किस जगह पर दु:ख है? परन्तु ऐसे देखो तो हर प्रकार से हम सुखी थे, परन्तु इस स्मृति का अपार दुःख था। हमें याद बहुत रहता था, एट ए टाइम सबकुछ याद रहता था, परन्तु स्मृति पौद्गलिक वस्तु है, चेतन नहीं है। फिर ज्ञान होने के बाद दिखने लगा। स्मृतिवाला दर्शन नहीं, परन्तु यथार्थ दर्शन हुआ। प्रश्नकर्ता : आप कहते हैं कि आपको स्मृति नहीं है, परन्तु आज से दस वर्ष पहले आपने किसी घटना या उदाहरण दिया हो, वह आज फिर से आपके मुख से सुनते हैं तब एक्जेक्टली उसी प्रकार से, उसी लिंक में, एक-एक शब्द क्रमबद्ध टेप की तरह निकलता है, वह क्या होगा? वह कौन-सी शक्ति है? ___हमारे पास पूछने आनेवालों की फाइल जाँच करके जवाब देने पड़ते हैं। इससे पहले क्या बात की थी, अभी क्या है, उन सभी कनेक्शन में जवाब होता है। हर एक की फाइल अलग-अलग है। इसलिए जवाब अलग-अलग होता है। जवाब उसकी फाइल के अधीन होता है। अब कोई कहेगा कि, 'दादा, आप एक ही प्रकार का जवाब सबको क्यों नहीं देते?' अरे, ऐसा नहीं है। हर एक की फाइल अलग-अलग है, हर एक के रोग अलग-अलग है। इसलिए हमारे पास शीशियाँ अलग-अलग और दवाई भी अलग-अलग होती है। हर एक के क्षयोपशम अलग-अलग होते हैं। हमारी सैद्धांतिक बात में कहीं भी परिवर्तन नहीं होता। उसे तो तीनों काल में कोई भी काट नहीं सकता, वैसी होती हैं। इन व्यवहारिक प्रश्नों का हल हर एक निमित्त के अधीन होता है। आप मुझे जो याद करवाते हो न, वह सबकुछ मुझे दिखता है। व्यापार का भी हमें हमारे कनुभाई कुछ पूछे, तब सबकुछ ही दिखता है। पुल दिखता है, उसके सारे खंभे दिखते हैं, कहाँ क्या है और क्या नहीं, वह सबकुछ दिखता है। याद करवाओ तब उपयोग केन्द्रित करते हैं और उससे सबकुछ क्रमबद्ध दिखता है। प्रश्नकर्ता : अर्थात् उपयोग से दिखता है न? दादाश्री : याद करवाए तब उपयोग वहीं जाता है। क्योंकि वह उपयोग उधर नहीं जाए तो व्यवहार सारा टूट जाएगा। प्रशस्त राग, मोक्ष का कारण समय आए उस घड़ी सबकुछ ही याद आ जाता है। अभी हमें सत्संग के ऊपर राग है, इसलिए सत्संग का समय हो तब जाने का याद आता है। महात्माओं पर राग रहता है। इन सभी रागों को प्रशस्त राग कहा जाता है। ये बंधन नहीं करवाते, परन्तु महाविदेह क्षेत्र के लिए बंधन करवाते हैं। महाविदेह क्षेत्र में श्री सीमंधर स्वामी के पास जाना है सभी को। इसलिए अभी से उन्हें पहचान लेना हो तो पहचान लेना। इसलिए तो हम उनके भजन गवाते रहते हैं। दादाश्री : राग-द्वेष के अधीन स्मृति है। इसलिए उसमें एक्जेक्ट नहीं होता। हमारे मुख से जो निकलता है वह दर्शन के आधार पर निकलता है, इसलिए एक्जेक्ट होता है। हमें सब दिखता है। बचपन में चार वर्ष का था तब से अभी तक का सारा ही देख सकता हूँ, हमें याद नहीं करना पड़ता। इस तरह चौदह साल की उम्र का देखू तो वह दिखता है, बीस साल की उम्र का देखू तो वह दिखता है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191