Book Title: Aptavani 04
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 136
________________ (२८) मुक्त हास्य २१५ हास्य नहीं होता है। वह इस काल में प्रकट हुआ है, अक्रम विज्ञान के 'ज्ञानी पुरुष' के पास प्रकट हुआ है - काम निकाल दे ऐसा है, सर्वस्व कर्म भस्मीभूत कर दे ऐसा है! 'ज्ञानी पुरुष' को जब देखो, रात के दो बजे देखो, तब भी एक ही प्रकार का मुक्त हास्य होता है! जब कि दूसरों के हास्य कषायों से स्तंभित हो चुके होते हैं। प्रश्नकर्ता : वैराग आ जाए तो उससे मुक्त हास्य रुक जाता है? दादाश्री : वैराग में तो उदासीनता आती है। उदासीनता अधूरी कहलाती है, मुक्त हास्य पूर्ण कहलाता है। प्रश्नकर्ता : आपके साथ बात करते-करते हमें कभी मुक्त रूप से हँसना आ जाता है, वह मुक्त हास्य कहलाता है? दादाश्री : हाँ, उस समय मुक्त हो जाता है। ऐसे करके प्रेक्टिस हो जाती है, नहीं तो ये 'दादा भगवान के असीम जय जयकार हो' वैसा हमें किसलिए करने की ज़रूरत है? उस समय भीतर का कचरा निकलता है और मुक्त होते हो। (२९) चिंता : समता भूतकाल, अभी कौन याद करता है? प्रश्नकर्ता : कल की चिंता नहीं करें तो कैसे चलेगा? दादाश्री : कल होता ही नहीं है। कल तो किसीने देखा ही नहीं दुनिया में। जब देखो तब आज ही होता है। कल तो मुश्किलों के साधन की तरह है। बीते हुए कल का अर्थ जो काल जा चुका है, वह है। भूतकाल का मतलब बीता हुआ कल। यानी आनेवाले कल की चिंता करनी ज़रूरी ही नहीं है। प्रश्नकर्ता : तो पहले से ही टिकिट किसलिए खरीदते हैं? दादाश्री : वह तो एविडेन्स है। वह सच न भी हो कभी। यह आप प्रोग्राम नहीं बनाते कि पच्चीसवीं तारीख को मुंबई जाना है, अट्ठाइसवीं तारीख को बड़ौदा जाना है? उन सबका आपको विज़न है ही। उस विज़न के कारण ही आप यथार्थ रूप से नहीं देखते हो। आप इस तरह के हकबकाए हुए विजन से ही देखते हो। यथार्थ विजन में आप स्थिरता में रहकर देख सकते हो। नियम ऐसा है कि एक बाउन्ड्री तक आप देखो तो आपको यथार्थ विज़न मिलेगा और उस बाउन्ड्री से आगे आज देखोगे तो अभी ठोकर खा जाओगे। जिसकी ज़रूरत नहीं है उसे देखना मत। हम घड़ी के सामने देखते ही रहें तो बल्कि यहाँ पर ठोकर लगेगी। इसलिए इस विज़न में कुछ हद तक का ही देख-देखकर चलना चाहिए। जहाँ कल नाम की कोई वस्तु ही नहीं उसका अर्थ ही क्या? जो काल चल रहा है, वह आज है और बीते हुए काल को कल कहते हैं,

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