Book Title: Aptavani 04
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 115
________________ (२१) तपश्चर्या का हेतु १७३ १७४ आप्तवाणी-४ प्रश्नकर्ता : आवश्यक भोजन नहीं करें तो धर्म का पुरुषार्थ किस तरह हो सकेगा? दादाश्री : उणोदरी अर्थात् भूख लगे तो खाना, पर भूखे पेट धर्म करने को नहीं कहा है। उणोदरी से डोजिंग नहीं होता। उणोदरी सबसे अच्छी चीज़ है। भोजन के चार भाग कर देने हैं। दो भाग रोटी-सब्जी के, एक भाग पानी और एक भाग खाली रहने देना वायु संचार के लिए। नहीं तो जागृति खत्म हो जाएगी। जागृति नहीं चूकें वह उणोदरी कहलाता है। उपवास तो यहाँ बहुत बढ़ गया हो, शरीर बिगड़ गया हो तब करना। वह आवश्यक नहीं है। 'उपवास', फिर भी कषाय प्रश्नकर्ता : जिस दिन उपवास करूँ उस दिन सुबह में उलूं तब से 'कोई मेरा काम कर दे तो अच्छा' ऐसा होता रहता है। तुझे बुखार आया होगा तो मिट जाएगा। कुछ तो रथ पर बैठने के लिए उपवास करते हैं। अरे, तेरे शरीर की पसलियाँ तो दिख रही हैं, फिर किसलिए ऐसा करता है? वह तो कोई मोटा हो उसके काम का है। भगवान का कहा हुआ उपवास गलत नहीं है। वह तो बहुत सुंदर है, पर वह किसे करने को कहा था? ये आपको मैंने 'स्वरूपज्ञान' दिया है, इसलिए आप उपवास करो तो वह भगवान के कहे अनुसार होगा। वर्ना जिसने असली घी खाया हो, शुद्ध दूध पीया हो, भोजन करते समय शद्ध घी हो, जब कंट्रोल का अनाज नहीं था, कंट्रोल का घी नहीं था, मिलावटवाला माल नहीं था, उन दिनों जो भोजन करते थे उन्हें भगवान ने उपवास करने को कहा था। आज के ये जीव भूखे हैं, उन्हें भला क्या उपवास करने? इन लोगों में ताकत ही कहाँ है? इनकी पसलियाँ तो दिखती हैं। दो-तीन उपवास करे तो हर्ज नहीं है। .....एक भी उपवास नहीं हुआ प्रश्नकर्ता : आपने ज्ञानी बनने के लिए कितने उपवास किए? दादाश्री : मुझे सौगंध खाने के लिए एक उपवास करना चाहिए, वह भी नहीं हुआ। हम निरंतर उणोदरी तप करते हैं, यह हमारी खोज है। निरंतर उणोदरी, वह निरंतर उपवास जैसा है। ये बारहों प्रकार के तप करने जाएँ तो कब अंत आएगा? उणोदरी-जागृति का हेतु प्रश्नकर्ता : जीवन में मोक्ष मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए उपवास नहीं हो सके तो यथाशक्ति क्या करना चाहिए? दादाश्री : उणोदरी करना। प्रश्नकर्ता : उणोदरी का अर्थ क्या है? दादाश्री : आप चार रोटियाँ खाते हों तो पहले तीन रोटियाँ खाओ, फिर दो रोटियाँ खाओ, वह उणोदरी कहलाता है। यह पेट कुछ भी डाल देने के लिए नहीं है! दादाश्री : ऐसा भिखारीपन करने के बदले तप नहीं करना अच्छा है। भगवान ने ऐसा नहीं कहा कि स्वाश्रयी बनने के बदले पराश्रयी बनो। प्रश्नकर्ता : उपवास किया हो तब कोई चीज़ खाने का मन करता हो, तब होता है कि आज तो मेरा उपवास है, परन्तु जो वस्तु भाती हो वह 'रख देना, कल खाऊँगा' तो उसका दोष लगता होगा या नहीं? दादाश्री : उसके बदले तो खानेवाला होता है वह खाकर मुक्त हो जाता है' और नहीं खानेवाला बंधता है, उसे बंधन नाम का दोष लगता है। खानेवाला खाता है और बंधता नहीं। वह तो खाता है और फिर उसे भूल जाता है। कल खाऊँगा' वाला खाता नहीं है, फिर भी उससे चिपटा रहता है, इसलिए वह बंधन में आया। अर्थात् यह झूठी बात जब उदय में आएगी, तब वह चार पैरोंवाला बन जाएगा! इसे ही, धर्म में पागलपन घुस गया है, कहा जाता है न? अरे, यह तो बड़ी जिम्मेदारी उठा ली, ऐसा कहा जाएगा। 'कल खाऊँगा' कहता है इसलिए रात को वह याद आता है, 'फ्रिज में रखा है इसलिए कल खाऊँगा' ऐसा ध्यान रहा करता है। अब

Loading...

Page Navigation
1 ... 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191