Book Title: Aptavani 04
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 108
________________ (२०) गुरु और ज्ञानी १५९ १६० आप्तवाणी-४ लगोगे और इन खोजा लोगों के गुरु ने तो विवाह किया एक यूरोपियन लेडी से! और उन सभी लोगों ने उत्सव मनाया कि अपने गुरु एक यूरोपियन लेडी से विवाह कर रहे हैं। उन्हें शिष्य कहते हैं। गुरु की कमियाँ नहीं निकालनी चाहिए। सब की कमियाँ निकालना परन्तु गुरु की कमियाँ नहीं निकालते, नहीं तो गुरु बनाना ही नहीं। जिसकी धर्म संबंधी भूल मिटे, वह तो भगवान कहलाता है। किसीकी भूल नहीं निकालनी चाहिए, वह तो बहुत बड़ी जोखिमदारी है। इसलिए सहजानंद स्वामी ने क्या खोज की वह जानते हो? गुरु पाँचवी घाती है। यदि थोड़ा भी उनका उल्टा देख लिया तो मारे जाओगे। और उल्टा दिखे तो भी 'नहीं, वैसा नहीं है', ऐसा करके आँखें बंद कर देना। क्योंकि, नहीं तो इससे जीव अधोगति में चले जाएँगे सारे। सिर्फ जो सँभलकर रहे हैं तो वे आगाखान (एक संप्रदाय) के। देखो, वहाँ कभी भी आवाज उठाई है? और अपने लोग, यदि उनके शिष्य हों तो सभी प्रकार से उसे न्याय में तोल देते। मैं गुरु की आराधना करने को नहीं कहता हूँ, परन्तु उनकी विराधना नहीं करना। और यदि आराधना करें तो काम ही हो जाए, परन्तु आराधना करने की इतनी अधिक शक्ति लोगों में नहीं होती है। मैं क्या कहता हूँ कि पागल गुरु बनाओ, बिल्कुल पागल को बनाओ, परन्तु पूरी ज़िन्दगी उनके प्रति सिन्सियर रहो तो आपका कल्याण हो जाएगा। बिल्कुल पागल गुरु के प्रति सिन्सियर रहने से आपके सभी कषाय खत्म हो जाएँगे! परन्तु इतना समझ में आना चाहिए न! वहाँ तक मति पहुँचनी चाहिए न! इसलिए तो आपके लिए पत्थर के देव रखे हैं कि यह प्रजा ऐसी है इसलिए पत्थर के रखो, ताकि कमियाँ तो नहीं निकालें। तब कहे, 'नहीं, पत्थर में भी कमी निकालते हैं कि 'यह श्रृंगार ठीक नहीं है!' यह प्रजा तो बहुत विचारशील! बहुत विचारशील है, वे गुरु के दोष निकालें ऐसे हैं। खुद के दोष निकालना तो कहाँ रहा, परन्तु गुरु का भी दोष निकालते हैं! उतनी अधिक तो उनकी एलर्टनेस!! हम गारन्टी देते हैं कि कोई भी पागल गुरु बनाओ और यदि पूरी ज़िन्दगी उसे निभाओगे तो मोक्ष तीन जन्मों में हो जाएगा, ऐसा है। लेकिन गुरु जीवित होने चाहिए। इसलिए तो इन लोगों को वह नहीं पुसाया और मूर्तियाँ रखी गई। प्रश्नकर्ता : गुरु जो आज्ञा करें, उस आज्ञा में ही रहना चाहिए न? दादाश्री : हाँ, पागलपनवाली आज्ञा करें तो भी आज्ञा में ही रहना चाहिए। आपको यदि मोक्ष में जाना हो, तो गुरु बनाओ तो गुरु के प्रति अंत तक सिन्सियर रहो। शिष्य किसे कहते हैं कि गुरु के सुख में खुद का सुख माने। गुरु को किससे आनंद होता है, वह देखे। और यदि पूरी ज़िन्दगी गुरु को निभाए तो सभी कषाय खत्म हो जाएँगे। आपके कषाय धोने का साधन पागल गुरु हैं, नहीं तो फिर 'ज्ञानी पुरुष' उसे धो देंगे। बीचवाले तो सब भटका देंगे। 'मुक्त पुरुष' की आज्ञावश रहना, वह धर्म कहलाता है। जिन्हें एकबार हमने गुरु की तरह स्थापन करके नमस्कार किया हो, फिर वैसे कोई भी गुरु हों, चक्रम हों या पागल हों, पर एकबार नमस्कार करने के बाद उनकी निंदा में नहीं पड़ना चाहिए। गुरु की कारस्तानी बाहर निकले तब हम निंदा करें, वैसा नहीं होना चाहिए। गुरु उल्टा करे तो वह जोखिमदारी गुरु की है, दूसरे किसीकी नहीं है। ये खोजा संप्रदाय के लोग गुरु की निंदा नहीं करते। उनकी बात कितनी समझदारीवाली है ! उनके इस समझदारी के गुण को स्वीकार करना चाहिए। वीतराग क्या कहते हैं कि किसी भी मनुष्य का समझदारीवाला गुण हो तो उसे स्वीकारना चाहिए। जब कि हिन्दु तो बहुत डेवलप जाति है इसलिए तुरन्त ही निंदा करती है कि ऐसा कैसे हो सकता है? तो ये लोग गरु के भी न्यायधीश! निंदा में पड़ते हैं, उस बुद्धि को हटा न यहाँ से। इन लोगों को पूर्वविराधक जीव किसलिए कहा है कि कचरा रह गया था, तभी इस काल में आया है। चौथे आरे (कालचक्र का बारहवाँ हिस्सा) वाले तो सत्युग, त्रेता और द्वापर के जो 'रबिश मटिरियल्स' हैं, वही आज के जीव हैं. वे विराधनावाले ही होते हैं। जो खाने को देते हैं, उन्हीं की विराधना करते हैं, गुरु सिखलाएँ तो उनकी विराधना करते हैं। माँ-बाप खाने का देते हैं. फिर भी उनके

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