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(२) ध्यान
आप्तवाणी-४
धर्मध्यान तो समझा ही नहीं। और चौथा शुक्लध्यान, वह तो प्रत्यक्ष मोक्ष का कारण है।
प्रश्नकर्ता : मन की शांति के लिए ध्यान करते हैं, वह क्या है? दादाश्री : कौन-से ध्यान करते हैं? प्रश्नकर्ता : मेडिटेशन करते हैं न! दादाश्री : वह तो सब मादकता है, उसमें बहुत फायदा नहीं है। प्रश्नकर्ता : तो फायदा किसमें है?
दादाश्री : फायदा तो, खुद का स्वरूप जानें कि, 'मैं कौन हूँ?', ताकि फिर निरंतर शांति, फिर जेब काट ले या चाहे जो हो फिर भी कुछ नहीं होता है।
प्रश्नकर्ता : एक जगह पर स्थिर बैठे बिना ध्यान हो सकता है?
दादाश्री : ध्यान तो चलते-फिरते, सांसारिक क्रियाएँ करते हुए होता ही रहता है। लोग रात-दिन आर्तध्यान और रौद्रध्यान करते हैं। देवगति में जाने का ध्यान भी चलते-फिरते हो सकता है और मोक्षगति में जाने का ध्यान भी चलते-फिरते हो सकता है।
ध्यान : ध्येय, ध्याता का संधान प्रश्नकर्ता : ध्यान का उद्भवस्थान क्या है?
दादाश्री : ध्यान का अर्थ क्या है कि कोई भी ध्येय नक्की करे और उसके साथ तार जोड़े, वह ध्यान, जितने समय तक तार जुड़ा रहे, उतने समय तक ध्यान रहता है। आपने मुंबई जाने का नक्की किया और मुंबई की टिकिट ली, तब गाड़ी में मुंबई का ध्यान आपको सहज रूप से रहता ही है।
ध्यान में ध्याता नक्की हो जाना चाहिए और ध्येय नक्की होना चाहिए। आप खुद ध्याता और नक्की किया हुआ ध्येय, इन दोनों का संधान
रहे, वह ध्यान कहलाता है। ध्येय और ध्याता तन्मयाकार हो जाएँ, उसे ध्यान कहते हैं। ध्याता तो आप हो ही, ध्येय की जगह पर आपने क्या रखा हुआ है?
प्रश्नकर्ता : कोन्सन्ट्रेशन करना है, उसे। 'स्व' पर ही करना है न?
दादाश्री : हाँ, 'स्व' पर ही करना है। परन्तु 'स्व' को समझे बिना किस तरह से होगा? 'स्व' क्या है, वह समझना पड़ेगा न? 'स्व' पुस्तक में नहीं है, किसी शास्त्र में लिखा हुआ नहीं है। शब्दरूप में लिखा हुआ होगा, परन्तु जो वास्तव में है वह तो शब्दरूप में नहीं है। इसलिए आप उसे किस तरह नक्की करोगे?
प्रश्नकर्ता : सपोज़ करके नक्की नहीं होगा?
दादाश्री : अहमदाबाद जाना है और सपोज़ करके उत्तर के बदले दक्षिण में चलें तो वह सपोज़ कैसे चलेगा? रेग्युलर स्टेज में सपोजिशन होना चाहिए। सपोज़ उसकी बाउन्ड्री में होना चाहिए, आउट ऑफ बाउन्ड्री नहीं होना चाहिए।
___ ध्यान तो तब होगा कि ध्येय के स्वरूप में पहचानना चाहिए और खुद ध्याता स्वरूप हो जाना चाहिए। 'मैं चंदलाल हँ', उस प्रकार से आप ध्याता बन जाते हो न? चंदूलाल तो आपका नाम है। आप ध्याता किस प्रकार बनते हो?
प्रश्नकर्ता : 'मैं शुद्धात्मा हूँ' उस प्रकार से।
दादाश्री : शुद्धात्मा कौन है लेकिन? उसका भान हो चुका है आपको?
प्रश्नकर्ता : नहीं, नहीं हुआ है।
दादाश्री: तो आत्मा का भान हुए बगैर कहो तो वह सारी गप्प कहलाती है। आत्मा का भान होना चाहिए। भान नहीं हुआ हो तो भी प्रतीति तो बैठनी ही चाहिए और वह प्रतीति भी टूटे नहीं वैसी होनी चाहिए। मैं