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(७) अंतराय
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आप्तवाणी-४
अंतराय पड़ता है। कोई कहे कि, "ज्ञानी पुरुष' आए हैं, चलो आना हो तो।' तब आप कहो कि, 'अब ऐसे 'ज्ञानी पुरुष' तो बहुत देखे हैं।' यह अंतराय डला! अब मनुष्य है, इसलिए बोले बगैर तो रहता ही नहीं न! आपसे नहीं जाया जाए ऐसा हो, तब आपको मन में भाव हो कि, 'ज्ञानी पुरुष' आए हैं पर मुझसे नहीं जाया जा सकता', तो अंतराय टेंगे। अंतराय डालनेवाला खुद नासमझी से अंतराय डालता है, उसकी उसे खबर नहीं
मोक्षमार्ग में अंतराय मोक्षमार्ग में तो अंतराय आएँ तब खुद की शक्तियाँ अधिक प्रकट होती जाती हैं। इसलिए इसमें अंतराय आएँ तो भी हमें हमारा निश्चय दृढ़ रखना है कि 'किसीकी ताकत नहीं कि मुझे रोक सके', वैसा भाव रखना है। मुँह पर नहीं बोलना है, बोलना तो अहंकार है।
खुद का अनिश्चय ही अंतराय है। निश्चय करें तो अंतराय टूट जाते हैं। आत्मा का निश्चय हो जाए तब सारे अंतराय टूट ही जाते हैं न!
संसारी बुद्धि के अंतरायों का बहुत हर्ज नहीं है, पर धार्मिक बुद्धि के अंतराय अनंत जन्मों तक भटका देते हैं। उसमें भी 'रिलेटिव' धर्म के अंतराय कई साधु, साध्वी, आचार्य महाराजों के टूटे हुए होते हैं, तब 'रियल' धर्म, आत्मधर्म के अंतराय बहुत डले हुए होते हैं।
अब धर्म में अंतराय किसलिए पडते हैं? 'मैं कुछ जानता हूँ' वह सबसे बड़ा अंतराय है। धर्म में जाना कब कहा जाता है? कभी भी ठोकर नहीं लगे, आर्तध्यान-रौद्रध्यान नहीं हो, थोडा-सा भी रौद्रध्यान का परिणाम तक खड़ा नहीं हो, वैसे संयोग भी नहीं मिलें, उसे 'जान लिया' कहा जाता है। इसलिए भगवान ने क्या कहा है, जब तक आर्तध्यान और रौद्रध्यान होता है, तब तक 'मैं कुछ भी नहीं जानता, 'ज्ञानी पुरुष' जानते हैं', ऐसे बोलना। तब तक सिर पर जिम्मेदारी मत लेना। बहत जोखिम है। दूसरे स्टेशन पर उतर जाओगे। भगवान ने सबसे बड़ा अंतराय ज्ञानांतराय को कहा है। लक्ष्मी के और दान के अंतराय टूटते हैं, पर ज्ञान के अंतराय जल्दी नहीं टूटते।
ज्ञानांतराय-दर्शनांतराय किससे? प्रश्नकर्ता : ज्ञानांतराय, दर्शनांतराय किससे पड़ते हैं?
दादाश्री : धर्म में उल्टा-सीधा बोले, 'आप कुछ भी नहीं समझते और मैं ही समझता हूँ', उससे ज्ञानांतराय और दर्शनांतराय पड़ते हैं। या फिर कोई आत्मज्ञान प्राप्त कर रहा हो, उसमें रुकावट डाले तो उसे ज्ञान का
प्रत्येक शब्द बोलना जोखिम से भरा हुआ है, वह बोलना नहीं आए तो मौन रहना अच्छा। उसमें भी धर्म में बहुत जोखिम है, व्यवहार के जोखिम तो उड़ जाएंगे।
ये भजन गाने क्यों नहीं आते हैं? 'हमें तो आएगा ही नहीं।' ऐसे करके अंतराय खड़े किए हैं। हमें तो आएगा ही।' वैसा बोले तो अंतराय टें। सीखने जाना ही नहीं पड़ता, सब सीखकर ही आया हुआ है।
प्रश्नकर्ता : 'मुझे भजन गाना आता है' बोले तो आ जाता है?
दादाश्री : नहीं। 'आता है' वैसा नहीं। क्यों नहीं आएगा?' वैसा मन में दृढ़ रहना चाहिए।
कुछ कहते हैं, 'ऐसा अक्रम ज्ञान तो कहीं होता होगा? घंटेभर में मोक्ष तो होता होगा?' ऐसा बोले कि उन्हें अंतराय पड़े। इस जगत् में क्या नहीं हो सकता, वह कहा नहीं जा सकता। इसलिए यह जगत् बुद्धि से नापने जैसा नहीं है। क्योंकि यह हुआ है, वह हक़ीक़त है। आत्मविज्ञान' के लिए तो खास अंतराय डले हुए होते हैं। यह सबसे अंतिम स्टेशन है।
परोक्ष के लिए जिनके अंतराय टूट गए हों, उन्हें प्रत्यक्ष के अंतराय होते ही हैं। इसलिए उन्हें परोक्ष ही मिलते हैं। और प्रत्यक्ष के अंतराय तो बहुत बड़े-बड़े डले हुए होते हैं। वे टें तब तो अनंत जन्मों के नुकसान की भरपाई हो जाती है।
प्रश्नकर्ता : ज्ञानांतराय और दर्शनांतराय किस तरह टूटते हैं?