Book Title: Apbhramsa Bharti 1999 11 12
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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"सौन्दर्य चित्रण को हम दो रूपों में देखते हैं - एक वस्तु-सौन्दर्य और दूसरा भाव-सौन्दर्य। महाकाव्यों और कथा-काव्यों में दोनों के निरूपण की पुरातन परम्परा रही है। वस्तु-सौन्दर्य से उन स्थलों या वस्तुओं के वर्णन का तात्पर्य है जहाँ कथानक या इतिवृत्त की विविध घटनाएँ घटित होती हुई आगे बढ़ती हैं और कथा-नायक के चरित्र को उजागर करती हैं। इनके अन्तर्गत नगर, प्रासाद, पुष्पवाटिका, उपवन, सरोवर, चित्रशाला, कुसुमशय्या, हाट, सेना, युद्ध-वर्णन आदि का चित्रात्मक निरूपण होता है।"
"करकंडचरिउ' में सौन्दर्य-चित्रण के लिए उसके कवि ने अनेक बिन्दु खोजे हैं। जहाँ वस्तु-योजना की है, वहाँ भावात्मक उद्भावनाएँ भी की हैं । लेकिन कहीं भी मानव-जीवन की उपेक्षा नहीं की है।"
"संदेश-रासक की कहानी बहुत सरल, किन्तु मर्मस्पर्शी है। यह महत्वपूर्ण विरह-काव्य है। विरह-पक्ष को साकार करने के लिए हृदय की मर्मवेदना के द्वारा वातावरण तैयार किया गया है। इसमें विप्रलम्भ शृंगार की प्रधानता है।" __ "कवि की काव्य-कुशलता का वर्णन करते हुए आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी कहते हैं कि कवि प्राकृतिक दृश्यों को चित्र द्वारा कुशलता से अंकित करता है कि इससे विरहिणी के विरहाकुल हृदय की मर्मवेदना मुखरित हो उठती है । वर्णन चाहे जिस दृश्य का हो व्यंजना हृदय की कोमलता और मर्म-वेदना की ही होती है।"
"इस रचना का षड्ऋतु-वर्णन रीतिकालीन ऋतुवर्णन के समान है।"
"संदेश-रासक की भाषा अपभ्रंश है, जिसे शौरसेनी अपभ्रंश का परवर्ती रूप नागर अपभ्रंश कह सकते हैं। स्वयं कवि ने अपनी इस रचना की भाषा को न अधिक पंडितों और न मों की बल्कि मध्यम श्रेणी के लोगों के लिए लिखी भाषा बताया है। अर्थात् वह बोल-चाल की भाषा में है। इसे ही अवहट्ट नाम दिया गया है, जो ग्राम्यापभ्रंश का ही जन-प्रचलित रूप है। वास्तव में कृति में इसका वह परवर्ती रूप विद्यमान है जो अपभ्रंश और हिन्दी के बीच की कड़ी है। अतः अवहट्ट भाषा का यह प्रायः सबसे प्राचीन उपलब्ध धर्मेतर-काव्य है। संस्कृत काव्यों में जो स्थान मेघदूत का है वही अपभ्रंश-काव्यों में इस रचना को प्रदान कर सकते हैं।" __ "रासक-काव्य-रूप की विशेषताओं से संकलित यह 'संदेश-रासक' एक छोटा-सा सुन्दर विरह-काव्य है, जिसमें कथावस्तु का कोई विशेष महत्व नहीं है, क्योंकि इसमें कथातत्त्व तो अत्यल्प है। इसलिए इस रासक की विशेषता उसके कथानक में नहीं, अपितु उसकी अभिव्यक्ति एवं कथन-शैली में है।" ___ "संदेश-रासक' का अप्रस्तुतविधान मुख्यतः आलंकारिक है। इसकी आलंकारिकता की रक्षा के लिए कवि ने अधिकांशतः परम्परामुक्त अप्रस्तुओं (उपमानों) का अवलम्बन लिया
कहीं-कहीं अद्दहमाण ने स्वच्छंद पद्धति विरल प्रयुक्त या नये उपमानों का प्रयोग करके अपनी मौलिकता का भी परिचय दिया है। संदेश-रासक में केवल बाह्य रूप-वर्णन ही नहीं
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