Book Title: Apbhramsa Bharti 1999 11 12
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

View full book text
Previous | Next

Page 63
________________ 50 अपभ्रंश भारती - 11-12 चंदोवा सोलह जिणभवणे धय देविणु किंकिणिरवमुहल । एहो वयहो उवासइँ मणहरहो पावेसहि वंछिय सुह सयल ॥ ( 10.16 ) जैनागम में तीर्थङ्कर के जीवनकाल के पाँच प्रसिद्ध घटनाओं का उल्लेख मिलता है जिन्हें पंच कल्याणक कहा जाता है क्योंकि वे अवसर/घटनाएँ जगत के लिए अत्यन्त कल्याण व मंगलकारी होती हैं । जो जन्म से ही तीर्थङ्कर प्रकृति लेकर उत्पन्न हुए हैं उनके गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान और निर्वाण इन पाँच कल्याणकों का विधान है परन्तु जिस तीर्थङ्कर ने अन्तिमभव में ही तीर्थङ्कर प्रकृति का बंध किया है उसको यथासम्भव चार, तीन तथा दो का भी विधान जैनागम में स्पष्टतः परिलक्षित है। वर्तमान में नवनिर्मित जिनबिम्ब की शुद्धि हेतु जो प्रतिष्ठापाठ किए जाते हैं वे इसी पंचकल्याणक की कल्पना हैं जिसके आरोप द्वारा प्रतिमा में तीर्थङ्कर की स्थापना होती है। कल्याणकों के माहात्म्य को देखते हुए धार्मिक प्राणी कल्याणक व्रत करते हैं । करकंडचरिउकार ने पंचकल्याण व्रत का माहात्म्य तथा क्रिया-विधान को अपने इस चरिउकाव्य के प्रधान नायक करकंड के माध्यम से अभिव्यक्त किया है। यथा - णामेण पसिद्ध भुवणयले पण कल्लाण विहाणु णिरुत्तउ । केवलणाणिहिं महरिसिहिँ सव्वविहाणहँ तिलउ पउत्तउ ॥ ( 10.25 ) X X X पुणु दिण्णउ काओसग्गु चारु, विहिँ सयहिँ फारु ॥ ( 10.26) X X इस प्रकार कवि मुनि कनकामरजी ने अपने इस करकण्डचरिउ में मूलनायक राजा करकंड को संसार में व्याप्त विभिन्न परिस्थितियों से सामना कराकर उसमें धर्म के बीज को बोया है, संसार की निस्सारता का ज्ञान कराया है, धार्मिक तत्त्वों के माध्यम से मूलनायक के अन्तरंग को कुरेदा है । फलस्वरूप वह भोग से योग की भूमि पर, राग से विराग के धरातल पर तथा संसार से मोक्ष के द्वार पर प्रतिष्ठित हुआ है। कवि ने पाठक को यह बतलाने की चेष्टा की है कि यदि व्यक्ति को सम्यक् उपादान व निमित्त मिल जाते हैं तो निश्चय ही अपने लक्ष्य तक पहुँच सकता है । इस काव्य में भी मूलनायक में धर्म के संस्कार तो हैं किन्तु वे सुप्त - प्रसुप्त हैं; उन्हें जब उपर्यङ्कित उपयोगी एवं कल्याणकारी धार्मिक तत्त्वों का निमित्त मिला तो भीतर पड़ी सुप्तचेतना जाग्रत हुई और दिशा एकदम बदल गई । 'मंगलकलश', 394, सर्वोदयनगर, आगरा रोड, अलीगढ़ (उ.प्र.) 202001

Loading...

Page Navigation
1 ... 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114