Book Title: Apbhramsa Bharti 1999 11 12
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 109
________________ 96 अपभ्रंश भारती - 11-12 कलापूर्ण अभिव्यक्ति है, जिसमें पद्य ही नहीं गद्य का भी प्रयोग उसके द्वारा अधिकारपूर्वक किया गया है और जिसके सम्बन्ध में एक बड़ी भारी बात यह है कि उसका पाठ शिलांकित होने के कारण अपने मूल रूप में सुरक्षित है। 12 रोडा-कृत 'राउलवेल' की प्रथम बार जानकारी डॉ. हरिवल्लभ चूनीलाल भायाणी ने दी थी। इसके बाद सन् 1960 ई. में डॉ. माताप्रसाद गुप्त ने इसका मूल पाठ प्रकाशित किया। प्रिंस ऑफ वेल्स म्यूजियम, बम्बई में स्थित 45"x33" आकार का यह शिलांकित भाषा-काव्य है। यद्यपि यह शिलालेख अपने आप में पूर्ण है; किन्तु बीच-बीच में इसका कुछ अंश त्रुटित भी है। वस्तुतः यह 11वीं शती की लोकभाषा में रचित एक शृंगार-काव्य है, जिसमें छ: नायिकाओं का नख-शिख वर्णन है। राउलवेल' (राजकुल-विलास) का रचनाकार रोडा है। शिलांकित भाषा-काव्य के अन्त में कहा गया है कि - रोडे राउलवेल वखाणी। (पुणु) तहं भासहं जइसी जाणी॥पंक्ति सं. 46 अर्थात् रोडा के द्वारा 'राउलवेल' कही गई है और फिर वहाँ भी भाषा में, जैसी उसकी जानी थी। यह कवि किसी सामन्त का वन्दी या चारण रहा होगा, क्योंकि काव्य में वह अपने आपको 'वंडिरा' कहता है - बुद्धि रे वंडिरो आपणी हार सी॥पंक्ति 22 जो देखि वंडिरो को न (मू) झइ जणु॥पंक्ति 24 'राउलवेल' के रचनाकाल का कोई स्पष्ट संकेत नहीं दिया गया है। इस भाषा-काव्य का नायक 'टेल्ल' (त्रिकलिंग) का निवासी था। 11वीं 12वीं शती में त्रिकलिंग कलचूरि शासकों के अधीन था, जो गौड़ नहीं थे। अत: यह लेख किसी सामन्त से सम्बद्ध होना चाहिए। यह त्रिकलिंग मध्यप्रदेश के दक्षिण कोसल का एक गाँव रतनपुरा बताया जाता है। अत: यही इस शिलालेख का लेखन स्थान होना चाहिए। ___ 'राउलवेल' के रचनाकाल के संबंध में कोई स्पष्ट संकेत नहीं है, किन्तु लिपि-विन्यास के आधार पर इसकी लिपि भोजदेव कृत 'कूर्म शतक' वाले धार के शिलालेख से मिलती है। दोनों में किसी भी मात्रा में अन्तर नहीं है। अत: इस लेख का उत्कीर्ण-काल भी 'कूर्मशतक' के आसपास ही, अर्थात् 11वीं शती ईस्वी होना चाहिए।' __इस शिलांकित भाषा-काव्य की विषय-वस्तु टेल्ल-निवासी किसी सामन्त की कुछ नायिकाओं का नख-शिख वर्णन है । प्रथम नायिका अज्ञात है। दूसरी हूणि है, तीसरी राउल नामक क्षत्रिय कन्या है, जिसका हाथ समस्त क्षत्रिय चाहते हैं - 'यु खता जणु सइलइ चाहहिं ।' चौथी टक्किणी, पाँचवीं गौड़ी और छठी मालवीया है । यह सम्पूर्ण काव्य इन्हीं नायिकाओं के सौन्दर्य को प्रशस्तिपरक ढंग से प्रस्तुत करता है। यह शृंगार-काव्य है।

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