Book Title: Apbhramsa Bharti 1999 11 12
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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अपभ्रंश भारती
मई दिन्नु हिउ हु पिउ हुई उवम इहु कहु कवण । सिंगत्थि गइय वाडव्वणी पिक्ख हराविय णिअ सवण 3
यहाँ साम्य का आधार व्यापार - विशेष
तड़पना या छटपटाना है।
इसी तरह एक अन्य छन्द में कवि ने नायिका की तुलना ऐसी खच्चरी (पशु विशेष ) से की है, जो गयी तो थी सींगों के लिए, परन्तु खोकर आयी अपने कान भी; यथा
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11-12
कुसुमसराउह रूवणिहि विहि णिम्मविय गरिट्ठा तं पिक्खेविणु पहिय णिहि गाहा भणिया अट्ठ ॥ 24
वियोगिनी ने प्रिय को बुलाने के लिए मनोदूत भेजा था। प्रिय तो नहीं ही आया, दूत भी वहाँ रह गया। प्रिय की वापसी सींग-प्राप्ति के समान है, जबकि दूत का वहीं रहजाना कान खोने के समान, क्योंकि, वह जो संदेश लानेवाला था उसे सुनकर कानों को सुख मिलता। व्यापारसाम्य को यहाँ तुलना का आधार बनाया गया है। अत: यह व्यापार-साम्याप्रित साधर्म्यमूलक अप्रस्तुतविधान (मूर्त्तविधान) का उदाहरण 1
(ग) प्रभाव - साम्याश्रित
प्रभाव-साम्याश्रित मूर्त्त अप्रस्तुतविधान का प्रयोग अपेक्षाकृत क्लेशकर होता है। फिर भी, संदेश - रासककार ने दो प्रयोग किये हैं • पहला, द्वितीय प्रक्रम के 31वें छन्द में और दूसरा, तृतीय प्रक्रम के ग्रीष्म-वर्णन में। उदाहरण निम्नांकित हैं।
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(i)
अर्थात् कामदेव के साक्षात् बाण की तरह, रूप-निधि तथा विधाता की उत्तम कृति उस सुन्दरी को देखकर पथिक ने आठ गाथाएँ पढ़ीं।
इस उदाहरण में कवि ने नायिका की तुलना कामदेव के अस्त्र से की है। यहाँ साम्य का आधार न तो आकृति है, न साम्य और न ही गुण विशेष, बल्कि प्रभाव है। जिसतरह कामदेव के पुष्प बाण से आज तक कोई नहीं बच सका है (देवाधिदेव महादेव भी नहीं), उसीतरह नायिका के सौन्दर्य-बाण से कोई नहीं बच सकता। दोनों ही प्रभाव में समानरूप से अचूक हैं । जम जीहह जिम चंचलु णहयलु लहलहई ।”
(ii)
अर्थात् नभ-तल यमराज की चंचल जीभ के समान लहलहाता था ।
आकाश-तल (मूर्त्त प्रस्तुत) और यमराज की जीभ ( मूर्त्त अप्रस्तुत) के बीच न तो सादृश्यमूलकता है और न ही साधर्म्यमूलकता । यहाँ तो प्रभाव-साम्यमूलकता है। प्रभाव-साम्य को आधार मारकता (दाहकता) में देखा जा सकता है। ग्रीष्मकाल में नभ - तल उसी तरह सूर्य की मारक उष्णता बरसाता है जिसतरह यमराज की लपलपाती जीभ मौत का ताण्डव प्रस्तुत करती है ।
इसतरह, कवि ने मूर्त्त-विधान के अन्तर्गत सादृश्य, साधर्म्य और प्रभाव - साम्य - तीनों प्रकार के साम्यमूलक अप्रस्तुतों की योजना की है ।