Book Title: Apbhramsa Bharti 1999 11 12
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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अपभ्रंश भारती - 11-12
93 3. चर्चरी - कवि ने अपने गुरु जिनवल्लभसूरि की स्तुति में चर्चरी लिखी है। यह एक प्रकार की लौकिक गाथा है, पर इसमें भी कवि ने बाह्याडम्बरों का निरसन निर्भीकतापूर्वक किया है। मठाधीशों, पाखण्डी साधुओं एवं प्रदर्शन के हेतु ग्रन्थों का अम्बार लगानेवाले साधुओं की खलकर भर्त्सना की है और चित्तशद्धि को ही आत्मकल्याण के लिए उपादेय बताया है।
जिनदत्त सूरि की सबसे बड़ी विशेषता है कि उन्होंने सरस शैली में धर्मोपदेश की रचना की है। उन्होंने अपने उपदेश रसायन में शृंगारिक विभाव अनुभावों का भी चित्रण किया है । अतः इनके काव्यों में सरसता अधिक पायी जाती है।
1. गणधरसार्द्ध शतक गाथा 78, 148 2. धन्यशालिभद्र चरित्र (नेजे.सा. सूची) अप्रसिद्ध, पृ. 59 3. द्वादशकुलाकतिवरणप्रान्ते 4. अपभ्रंशकाव्य त्रयी, लालचन्द भगवानदास गांधी, ओरियन्टल इंस्टीट्यूट बड़ौदा,
भूमिका पृ. 601 5. उपदेशरास रसायन, पृ. 30, दोहा 2 6. वही, दोहा 48 7. वही, दोहा 13 8. वही, दोहा 16 9. वही, दोहा 35, 36, 37 . 10. वही, दोहा 39, 43, 49 11. वही, दोहा 60 12. वही, दोहा 72, 73, 74 13. अपभ्रंशकाव्यत्रयी के अन्तर्गत कालस्वरूप कुलकम्, 5 14. वही, 6 15. वही, दोहा 31 16. वही, दोहा, 11 17. वही, दोहा 29 18. वही, दोहा.32
अलका, 35, इमामबाड़ा मुजफ्फरनगर - 257002