Book Title: Apbhramsa Bharti 1999 11 12
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 102
________________ अपभ्रंश भारती - 11-12 1999, अक्टूबर अक्टूबर - 2000 89 आचार्य जिनदत्त सूरि और उनकी अपभ्रंश रचनाएँ डॉ. (श्रीमती) सूरजमुखी जैन आचार्य जिनदत्त सूरि उच्चकोटि के धर्माचार्य, लेखक एवं सुकवि थे । आपने सम्पूर्ण मरुदेश का भ्रमण कर जैनधर्म का प्रचार किया, इसलिये आपको मरुस्थली कल्पतरु भी कहा जाता I अजमेर नरेश अणौराज और त्रिभुवनगिरि के राजा कुमारपाल आदि तत्कालीन शासक एवं सामन्त आपके भक्त थे। जैन संस्कृति और साहित्य के पुनरुत्थान की दृष्टि से आपका महत्त्वपूर्ण स्थान । आपने अपने समय में साधुओं के शिथिलाचार को दूर करने का अपूर्व श्रम किया था। आप संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश तीनों भाषाओं के विशेषज्ञ विद्वान थे । परिचय तथा रचनाकाल आचार्य जिनदत्त सूरि के शिष्य सुमतिगणि ने 'गणधरसार्द्धशतक' में आपका परिचय देते हुए लिखा है कि आप वि.सं. 1132 में वाच्छिग नामक श्रावक की पत्नी बाहड़देवी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे । वि.सं. 1141 में धर्मदेवोपाध्याय से दीक्षा ग्रहण की और जिनवल्लभ सूरि के देहावसान के बाद वि. सं. 1169 में देवभद्राचार्य से सूरिपद प्राप्त किया ।' वि.सं. 1285 में पूर्णभद्रगणि ने आचार्य जिनदत्त की स्तुति करते हुए लिखा है

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