Book Title: Apbhramsa Bharti 1999 11 12
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
View full book text
________________
अपभ्रंश भारती - 11-12
उपरिलिखित उदाहरणों में प्रयुक्त प्राय: सारे अप्रस्तुत परंपरागत हैं। रमणी की कटि के लिए भिड़ (ब) अप्रस्तुत का प्रयोग किंचित् नवीनता की प्रतीति कराता है। कमर की क्षीणता को रेखांकित करने के लिए 'सिंह' का अप्रस्तुत रूप में प्रयोग जितना परंपरित है, मेरी जानकारी में, 'बर्रे' का प्रयोग उतना परंपरित प्रतीत नहीं होता ।
72
जो हो, आकृति - साम्याश्रित सादृश्यमूलक मूर्त्त-विधान का जो ठाठ यहाँ खड़ा किया गया है वह उपमा, उत्प्रेक्षा आदि साम्यमूलक अलंकारों के सहारे ही ।
(आ) वर्ण - साम्याश्रित
'संदेश - रासक' में आकृति - साम्याश्रित अप्रस्तुतविधान की तुलना में वर्ण साम्याश्रित अप्रस्तुत विधान अल्प है। किन्तु, संतोष की बात यह है कि ये प्रयोग परंपरित होते हुए भी समीचीन और आह्लादकारी हैं। उदाहरण द्रष्टव्य हैं
संदेश - रासककार ने साम्बपुर की कामिनी (स्त्री) की दंत-पंक्ति ( मूर्त्त प्रस्तुत ) की उज्ज्वलता दिखाने के लिए जहाँ हीर - पंक्ति (मूर्त अप्रस्तुत) का प्रयोग किया है; यथा - हीरपंति सारिच्छ डसण 12 वहाँ मूर्त्त प्रस्तुत 'कपोलों' की लालिमा दिखाने के लिए मूर्त अप्रस्तुत 'दाडिम कुसुम-पुंज' का प्रयोग किया है; जैसे -
अवर कवोल कलिज्जहि दाडिमकुसुमदल | 3
एक ओर कवि ने नायिका के काले बालों (मूर्त्त प्रस्तुत) के लिए अलिकुल- माता (मूर्त्त अप्रस्तुत ) 14 - किसणत्तणंमि अलया अलिउलमालव्व रेहंति का प्रयोग किया है तो दूसरी ओर उज्ज्वल पद-नख-पंक्ति (मूर्त्त प्रस्तुत ) के लिए स्फटिक खंड ( मूर्त्त अप्रस्तुत) का प्रयोग किया है; यथा - फलिहकुट्टि णहपंती 115
तृतीय प्रक्रम के 'शरद वर्णन' में कवि ने रंग साम्य दिखाने के लिए 'सफेद बालोंवाले सरोवर-तट' (मूर्त्त प्रस्तुत) हेतु 'सफेद शंख' (मूर्त्त अप्रस्तुत) का प्रयोग किया है; यथा -
धवलय धवल संख संकासिहि, णिम्मलनीर सरिहिं पवहंतिहिँ ।"
'शरद-वर्णन' में ही एक स्थल पर कवि ने 'स्त्रियों के शीश भाग' (मूर्त्त प्रस्तुत) के लिए 'घने काले रंगवाले गोपुर' (मूर्त्त अप्रस्तुत) तथा 'शीश पर स्थित कुसुम' का प्रयोग करते हुए वर्ण-साम्याश्रित अप्रस्तुतविधान का सुन्दर निदर्शन प्रस्तुत किया है ।
(इ) आकृति - वर्ण - साम्याश्रित
एक स्थल पर कवि ने आकृति और वर्ण के युगपद् साम्य पर आधारित मूर्त्त विधान किया है; यथा -
छायंती कह कहव सलज्जिर णियकरिहि, कणयकलस झंपंती णं इंदीवरिहिं ॥7
अर्थात् जब वियोगिनी नायिका पथिक को अपना संदेश सुनाने के लिए उतावली होकर बढ़ी ही थी कि उसकी रेशमी चोली मसक गयी। फलस्वरूप, उसके स्तन कुछ-कुछ दिखायी पड़ने