Book Title: Apbhramsa Bharti 1999 11 12
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 78
________________ अपभ्रंश भारती - 11-12 65 की परिपुष्टि करता है। यह ऋतु-वर्णन मिलन-जन्य आनन्द में उद्दीपन का संचार करता है। विरह-काव्य की दष्टि से संदेश-रासक का अपभ्रंश-साहित्य में ही नहीं, अपित सारे हिन्दीसाहित्य में भी अपना विशेष महत्व है। अत्यन्त क्षीण कथानक पर कवि ने विरह का जो वितान खड़ा किया, वह अद्भुत है । उक्त कथावस्तु से सामान्य रूप में हम संदेश-रासक की रमणीयता का आभास प्राप्त कर सकते हैं। कवि ने परम्परा-प्रचलित उपमानों के माध्यम से सौन्दर्य की अभिव्यंजना में सफलता प्राप्त की है। कवि का छंद, अलंकार एवं भाषा पर ही नहीं, मनोभावों पर भी पूर्ण अधिकार है। इस रचना में तत्कालीन जीवन की अच्छी झाँकी है। संदेश-रासक की भाषा अपभ्रंश है, जिसे शौरसेनी अपभ्रंश का परवर्ती रूप नागर अपभ्रंश कह सकते हैं। स्वयं कवि ने अपनी इस रचना की भाषा को न अधिक पंडितों और न मूर्यो की बल्कि मध्यम श्रेणी के लोगों के लिए लिखी भाषा बताया है।' अर्थात् वह बोल-चाल की भाषा में है। इसे ही अवहट्ट नाम दिया गया है, जो ग्राम्यापभ्रंश का ही जन-प्रचलित रूप है। वास्तव में कृति में इसका वह परवर्ती रूप विद्यमान है जो अपभ्रंश और हिन्दी के बीच .की कड़ी है । अत: अवहट्ट भाषा का यह प्रायः सबसे प्राचीन उपलब्ध धर्मेतर-काव्य है । संस्कृत काव्यों में जो स्थान मेघदूत का है वही अपभ्रंश-काव्यों में इस रचना को प्रदान कर सकते हैं। प्रेम-भावनाजनित कथानक के आधार पर रचित लघु-दीर्घकाय प्रबंधों में 'संदेश-रासक' का नाम सर्वप्रथम आता है । यह एक विरह-प्रधान काव्य है जिसमें लौकिक प्रेम की बड़ी सहज एवं सुन्दर अभिव्यंजना हुई है। इसमें प्रेम का बड़ा मार्मिक एवं संवेद्य स्वरूप का चित्रण है। प्रसंगानुसार इसमें विरह वर्णन के अलावा बसंत-ऋतु और नारी-शोभा तथा मानवीय संवेदनशीलता का भी भावुक चित्रण हुआ है। इसमें पथिक विरहिणी को अनेक प्रकार से आश्वासन देता है और जब वह विरहिणी को समझा रहा होता है, उसी समय उसका पति आता दीख गया और काव्य का चमत्कारिक ढंग से उपसंहार हो गया। अंत में सभी के कल्याण की कामना की गई है। सबके जीवन को सुखी बनाने का संदेश निहित है। वस्तुतः 'रासक' की मूल संवेदना प्रेम एवं शृंगारपरक है । विरह-वर्णन, वस्तु-वर्णन, भाषा-प्रयोग, प्रकृति-वर्णन एवं रसोद्रेक की दृष्टि से इसकी बहुशः प्रशंसा की जा सकती है। रासक-काव्य-रूप की विशेषताओं से संकलित यह 'संदेश-रासक' एक छोटा-सा सुन्दर विरह-काव्य है, जिसमें कथावस्तु का कोई विशेष महत्व नहीं है, क्योंकि इसमें कथातत्त्व तो अत्यल्प है। इसलिए इस रासक की विशेषता उसके कथानक में नहीं, अपितु उसकी अभिव्यक्ति एवं कथन-शैली में है। कवि ने लोक-जीवन से उद्भूत स्वछंद एवं अकृत्रिम कथा के आधार पर अपने लौकिक प्रेम-गाथात्मक इस काव्य की रचना की है। यद्यपि बड़ा काव्य न होने के कारण कवि को छोटी-छोटी बातों का विशद वर्णन करने का अवसर नहीं था, फिर भी जिस मार्मिकता, संयम और सहृदयता का परिचय कवि ने दिया है, वह उसकी कवित्व-शक्ति, पांडित्य, परम्परा-ज्ञान और लोकवादिता को स्पष्टतया बताने में समर्थ है। काव्य में साधारणतः श्लिष्ट शब्दों की योजना ही इसका कौशल है।

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