Book Title: Apbhramsa Bharti 1999 11 12
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 82
________________ अपभ्रंश भारती - 11-12 69 अक्टूबर - 1999, अक्टूबर - 2000 'संदेश-रासक' में अप्रस्तुतविधान - डॉ. बहादुर मिश्र अब्दुल रहमान-कृत 'संदेश-रासक' में प्रयुक्त अप्रस्तुतविधान की विचिकित्सा करने के पूर्व अप्रस्तुतविधान के प्रचलित काव्य-रूपों पर विहंगम दृष्टि डालना अप्रासंगिक नहीं होगा। हिन्दी काव्य में अप्रस्तुतविधान के तीन रूप प्रचलित हैं - (1) मूर्त विधान, (2) अमूर्त विधान तथा (3) मूर्तामूर्त विधान। 1. मूर्त विधान मूर्त अथवा अमूर्त प्रस्तुत (उपमेय) को अधिकाधिक स्पष्ट करने एवं काव्यानुभूति को संवेद्य बनाने के उद्देश्य से जब कोई कवि मूर्त अप्रस्तुत (उपमान) का विधान करता है तब उसे मूर्त विधान कहते हैं। इसे मूर्तीकरण, स्थूल विधान और वस्तु विधान भी कहते हैं। चूँकि, अप्रस्तुतविधान का यह रूप वस्तुवादी दृष्टिकोण पर आधारित है; फलस्वरूप, इसमें इतिवृत्तात्मकता आ जाती है। यद्यपि इससे बिम्ब-ग्रहण कराने में सहायता मिलती है, तथापि यह अप्रस्तुतविधान का स्थूलतम प्रकार माना गया है। प्रचलन के आधार पर मूर्त विधान के दो भेद किये जा सकते हैं - (क) मूर्त प्रस्तुत के लिए मूर्त अप्रस्तुतविधान तथा (ख) अमूर्त प्रस्तुत के लिए मूर्त अप्रस्तुतविधान।

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