Book Title: Apbhramsa Bharti 1999 11 12
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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अपभ्रंश भारती - 11-12
___ युद्ध-वर्णन में कैसी अद्भुत गत्यात्मकता है - युद्ध का जीता-जागता चित्र ही उपस्थित हो गया है - नगाड़ों पर चोट पड़ी जिससे भुवन-तल भर गया। बाजे बज रहे हैं, सैन्यदल सज रहे हैं । व्यूह रचित होने पर सेनाएँ शत्रुबल से भिड़ गईं। भाले भग्न हो रहे हैं, कुंजर गरज रहे हैं, योद्धा वेग से बढ़ रहे हैं, हाथी के दाँतों से भिड़ रहे हैं। गात्र टूट रहे हैं, सिर फट रहे हैं । रुण्ड दौड़ रहे हैं, शत्रु स्थान प्राप्त कर रहे हैं । आँतें निकल रही हैं, रुधिर में लथपथ हो रही हैं । हड्डियाँ मुड़ रही हैं, ग्रीवाएँ टूट रही हैं -
ता हयइँ तूराइँ, भुवणयलपूराइँ। वजंति वज्जाइँ, सज्जंति सेण्णाइँ। आणाएँ घड़ियाइँ, परबलइँ भिडियाइँ। कुंताइँ भन्जंति, कुंजरइँ गजंति। रहसेण वग्गंति, करिदसणे लग्गंति। गत्ताइँ तुटुंति, मुंडाइँ फुटृति। रुंडाइँ धावंति, अरिथाणु पावंति। अतांई गुप्पंति, रुहिरेण थिप्पंति।
हड्डाइँ मोडंति, गीवाइँ तोडंति। (3.15) जब वामी की भक्ति-सहित पूजा करके हाथी चला जाता है तब करकंड सरोवर के निकट जाता है। उस समय कवि सरोवर का चित्रण मानवीकरण अलंकार के माध्यम से करता हुआ कहता है - राजा को अपने निकट आता हुआ देखकर मानो सरोवर पक्षियों के कोलाहल के ब्याज से कह रहा है कि यह जल हस्तियों के कंभस्थलों द्वारा कलश धारण किये था और तृष्णातुर जीवों को सुखी करता था। वह उच्च दण्डों के कमलों द्वारा उन्नति वहन कर रहा था और उछलती मछलियों के माध्यम से मन के उत्साह को प्रकट कर रहा था। फेन-पिण्डरूपी दाँतों से हँस रहा था एवं निर्मल तथा प्रचुर गुणों सहित चल रहा था। विकसित कमलों द्वारा वह अपनी प्रसन्नता व्यक्त कर रहा था और विविध विहंगों के रूप में नाच रहा था। भ्रमरावली की गुंजार द्वारा वह गा रहा था और पवन से प्रेरित जल के द्वारा दौड़ रहा था -
आवंतहो तहो अइदिहि जणंतु, खगरावई आवहु णं भणंतु। जलकुंभिकुंभकुंभइँ धरंतु, तण्हाउरजीवहुँ सुहु करंतु। उइंडणलिणिउण्णह वहंतु, अइणिम्मलपउरगुणेहिं जंतु। पच्छण्णउ वियसियपंकएहिं, णच्चंतउ विविहविहंगएहिं। गायतंउ भमरावलिरवेण, धावंतउ पवणाहयजलेण। (4.7.2) इसी प्रकार भीषण वन और लयण-वर्णन (4-4.5-52), जल-वाहिनी का वर्णन (4-24-58), रतिवेगा का विलाप-वर्णन (7-11-99), हाथी द्वारा राजा के चयन का वर्णन (2-1-16) आदि अनेक स्थल सौन्दर्य की दृष्टि से अनूठे हैं।