Book Title: Apbhramsa Bharti 1999 11 12
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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अपभ्रंश भारती - 11-12
ने 'कुबलयमाला कहा' में अपभ्रंश के आकर्षण का वर्णन करते हुए बताया है कि "यह शुद्ध
और मिश्रित संस्कृत और प्राकृत शब्दों का समानुपातिक और आनन्ददायक मिश्रण है। चूंकि अपभ्रंश साहित्य के निर्माण में जैनों और बौद्धों का विशिष्ट योगदान है, यही कारण है कि इसमें धार्मिक साहित्य प्रचुर मात्रा में मिलता है। साहित्य रचनाकारों में धार्मिक विचारों का बाहल्य होने के कारण साहित्यिक पृष्ठाधार धार्मिकता में रचा-बसा दिखाई देता है। यद्यपि अपभ्रंश साहित्य में राजनीतिक चेतना का अभाव-सा दिखाई देता है, फिर भी अपभ्रंशकालीन यह परिस्थिति उपेक्षणीय नहीं है, क्योंकि अपभ्रंश साहित्य के सर्वांगीण अध्ययन में इसका भी विशेष महत्व है। अतः सर्वप्रथम राजनीतिक चेतना का संक्षिप्त विवरण ही द्रष्टव्य है -
राजनीतिक आधार - ईसा की छठी शताब्दी में गुप्त साम्राज्य के पतन के उपरान्त मगध गुप्तों के आधिपत्य में था और मध्य देश में मखौरियों ने अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था। इसी समय गुजरात-काठियावाड़ तक गुर्जरजाति ने अलग आधिपत्य स्थापित कर लिया था। इस प्रकार पंजाब में गुजरात और गुजरांवाला प्रांत, दक्षिण मारवाड़ में भिन्नमाल और भरुच में गुर्जरत्रा इनके गढ़ थे। अतः उत्तर भारत में यही तीन बड़ी शक्तियाँ प्रबल थीं। थानसेर में प्रभाकरवर्धन ने सातवीं शताब्दी के आरम्भ में उत्तरापथ की ओर अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया तथा इसी समय उसके पुत्र हर्ष ने उत्तर भारत की बिखरती हुई सत्ता को नियन्त्रित किया। हर्ष ने चीन में भी अपने दूतों को भेजा तथा चीन के दूत भी कन्नौज में आये। हर्षवर्धन की ही तरह दक्षिण में पुलकेशिन द्वितीय बलवान राजा था जिसके दरबार में ईरानी राजा खुसरो ने अपने दूतों को भेजा था। चूंकि छठी शताब्दी में हूणों को परास्त करने के बाद भारत कुछ समय के लिए निश्चित हो गया था परन्तु जब 710 ई. में अरबों ने सिन्ध पर विजय प्राप्त की तो भारत को फिर से चौकन्ना होना पड़ा। अरबों ने सिन्ध से आगे बढ़ने का भी भरसक प्रयास किया किन्तु सफल नहीं हो सके, फिर भी आठवीं शताब्दी के मध्य तक वे भिन्नमाल राज्य और सौराष्ट्र पर हमले करते रहे। ___ "अरबों के भारत में प्रवेश करने से हिन्दू और अरब संस्कृतियों का मेल हुआ। भारत के अनेक हिन्दू विद्वान् बगदाद गये और अनेक अरब विद्यार्थी पढ़ने के लिए भारत आये। संस्कृत के दर्शन, वैद्यक, ज्योतिष, इतिहास, काव्य आदि के अनेक ग्रन्थों का अरबी में अनुवाद हुआ। भारत से गणित आदि का ज्ञान अरब लोग ही यूरोप में ले गये। पंचतन्त्र आदि की कहानियाँ भी उन्हीं के द्वारा विदेशों में पहुँची। धीरे-धीरे हर्षवर्धन का राज्य भी छिन्न-भिन्न होने लगा
और उत्तर भारत अनेक राज्य-खण्डों में विभाजित हो गया तथा परस्पर युद्ध आरम्भ हो गये, जिनमें पूर्व में बिहार-बंगाल के पाल, पश्चिम में गुजरात-मालवा के प्रतिहार तथा दक्षिण में मान्यखेट के राष्ट्रकूट प्रमुख थे। ये तीनों ही कन्नौज पर अपना अधिकार करना चाहते थे, पर सफलता प्राप्त नहीं हुई, क्योंकि नवीं शताब्दी में भोज और उसके वंशजों ने कन्नौज को अपने अधिकार में ले लिया। ___ दसवीं शताब्दी में भी छोटे-छोटे राज्यों का आपसी संघर्ष विद्यमान था। इन राजाओं में व्यक्तिगत स्वार्थ पर्याप्त मात्रा में दिखाई देता था जिसकी रक्षा के लिए वे विदेशियों की सहायता