Book Title: Apbhramsa Bharti 1999 11 12
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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अपभ्रंश भारती
11-12
अक्टूबर अक्टूबर
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1999,
2000
अपभ्रंश साहित्य का पृष्ठाधार
डॉ. रेनू उपाध्याय
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अपभ्रंश साहित्य के अध्ययन एवम् अनुशीलन का आधार सामान्य लोकचेतना के उदय और विकास के इतिहास का महत्वपूर्ण अध्ययन हैं। हमारी राष्ट्रीय चेतना एवम् भावनाएँ जैसे-जैसे लोकोन्मुख होती गईं, हमारा ध्यान प्राचीन तथा अर्वाचीन लोकभाषाओं और लोक-साहित्यों की ओर अग्रसर होता गया। जैसे संस्कृत भाषा तथा साहित्य सम्बन्धी अनुशीलन का अभिनव उत्साह आधुनिक सांस्कृतिक पुनरुत्थान का मंगलाचरण है, वैसे ही प्राकृत और अपभ्रंश में क्रमशः बढ़ती हुई रुचि उस पुनरुत्थान की लोकोन्मुखता का साक्ष्य है। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि अपभ्रंश में अब तक जितना साहित्य प्राप्त हुआ है उसमें से अधिकांश केवल दिगम्बर जैन धर्म से प्रेरित एवम् प्रभावित है। अथवा यह भी कहा जा सकता है कि अपभ्रंश साहित्य में " मानवजीवन और जगत् की अनेक भावनाओं और विचारों को वाणी मिली है। यदि एक ओर इसमें जैन मुनियों के चिन्तन का चिन्तामणि है, तो दूसरी ओर बौद्ध सिद्धों की सहज साधना की सिद्धि भी है, यदि एक ओर धार्मिक आदर्शों का व्याख्यान है तो दूसरी ओर लोकजीवन से उत्पन्न होनेवाले ऐहिक रस का रागरंजित अनुकथन है । यदि यह साहित्य नाना शलाका-पुरुषों के उदात्त जीवन-चरित से सम्पन्न है, तो सामान्य वणिक-पुत्रों के दुःख-सुख की कहानी से भी परिपूर्ण है । "
भाषा-विज्ञान के आचार्यों ने अपभ्रंश भाषा का काल 500 ई. से 1000 ई. तक बताया है, परन्तु इसके साहित्य की प्राप्ति लगभग आठवीं सदी से प्रारम्भ होती है । यद्यपि उद्योतन सूरि
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