Book Title: Apbhramsa Bharti 1999 11 12
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 39
________________ 26 अपभ्रंश भारती - 11-12 अणमंथियउअहि व अपयखोहु उज्जाणवणु व उत्तुंगसालु उल्लसियसोणपेसलपवालुलु। तियसिंद व विबहयणहो मणि रंभापरिरंभिउ सइँ गरिट्ठ। वम्महु जिह रइपीईसमिद्ध णहयल परिघोलिरमयरचिंधु। वम्महु जिह णिम्मलधम्मसज्जु उप्फुल्लियकुसुमसरू मणोज्जु। अणमंथियउअहि व रयणठाणु मणहरणसुरालउ सिरिणिहाणु। अणमंथियउअहि व अपयखोहु तह दिव्वतुरयकरिवरससोहु। अणमंथियउअहि व अमयजुत्तु परमहिहरिदउक्कंपचत्तु। अणमंथियउअहि व सुरहिवासु असमच्छर जणविरइयविलासु। घत्ता- तहिं अस्थि कित्ति धवलियभुवणु रिद्धिएँ हसियसुरेसरु। चेल्लणमहएवी परियरिउ सेणिउ णाम णरेसरु ॥4॥ सुदंसणचरिउ 1.4 वह नगर ऊँचे शालवृक्षों तथा उल्लसित लाल सुन्दर कोपलोंवाले उद्यानवन के सदृश ऊँचे कोटसहित, रक्तमणि व सुन्दर प्रवालों से चमकता था। वह बुद्धिमानों के लिए उसी प्रकार प्यारा था, कदली वृक्षों से भरा था, व गरिष्ट था, जैसा कि देवेन्द्र देवों को प्यारा है, रम्भा अप्सरा से आलिंगित है, तथा स्वयं गरिमा को प्राप्त है। वहाँ रति और प्रीति की खूब समृद्धि थी; तथा आकाश में वहाँ की मकराकृति ध्वजाएँ फहरा रही थीं; अतएव जो कामदेव के समान दिखाई देता था, जो रति और प्रीति नामक देवियों से युक्त है, और जिसकी ध्वजा मकराकार है । वह नगर निर्मल धर्म से सुसज्जित तथा प्रफुल्लित पुष्यों वाले मनोज्ञ सरोवरों के द्वारा उस मन्मथ के समान था जो निर्मल धनुष से सज्जित तथा पुष्पवाणों से मनोज्ञ है । वह रत्नों का स्थान, मनोहर देवालय युक्त व सम्पत्ति का निधान होने से उस अमथित उदधि के समान था जो रत्नों का आगार, मनोहर सुरा का आलय तथा श्री का निधान था। वहाँ की प्रजा में कभी क्षोभ नहीं होता था और वह दिव्य तरङ्गों तथा श्रेष्ठ हाथियों से शोभायमान था, जिससे वह नगर मन्थन से पूर्वकालीन उदधि के समान था, जिसके जल में मंथन का क्षोभ नहीं हुआ था; और जो दिव्य अश्व और उत्तम हाथी रूपी रत्नों से शोभायमान था। अमृतयुक्त व मेरूपर्वत द्वारा उत्पन्न कंप से रहित मन्थन से पूर्व उदधि के समान वह नगर मद-मान से रहित तथा सर्पो व वानरों के विशेष उपद्रव से सरक्षित था। सरा के निवास तथा असाधारण अप्सरा जनों के विलास से यक्त अमर्मा उदधि के समान वह नगर सुगन्धित द्रव्यों से युक्त एवं ईर्ष्या से मुक्त लोगों का क्रीड़ास्थल था। ऐसे उस राजगृह नगर में अपनी कीर्ति से भुवनमात्र को धवलित करनेवाला एवं ऋद्धि से सुरेन्द्र का भी उपहास करनेवाला राजा श्रेणिक अपनी चेलना नामक महादेवी सहित राज्य करता था। अनु. - डॉ. हीरालाल जैन

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