Book Title: Apbhramsa Bharti 1999 11 12
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 46
________________ 33 अपभ्रंश भारती - 11-12 अर्थात्, नागकुमार के कहने पर उसके निष्ठुर करोंवाले और भृकुटी से भयंकर दिखाई पड़नेवाले किंकर वैरियों का क्षय करने, स्वामी का हित साधने तथा शत्रुओं की जयश्री का अपहरण करने के लिए भाले और मुद्गर लेकर दौड़ पड़े।.... दोनों पक्षों के सैनिक एक दूसरे का पेट चीरने और प्रहारों को रोकने लगे। तलवारों की खन-खन ध्वनि के साथ 'मारो-मारो' का भयानक कोलाहल होने लगा। हाथी रौंदे जाने लगे। लोहू का रेला बहने लगा। बड़े-बड़े रथ खिंचने लगे और केश नोचे जाने लगे। ध्वजा और पताकाएँ धराशायी होने लगीं। घोड़े भागने लगे। छुरियाँ चलने लगीं। क्रोध की आवाज घनघनाने लगी। इस प्रकार नागकुमार के भृत्य जूझने लगे। इस प्रकार के काव्यांशों के उदाहरणों में काव्यकार पुष्पदन्त की रीति-रमणीय रचना-प्रतिभा की प्रौढ़ता का पुष्ट प्रमाण उपलब्ध होता है। बिम्बविधान के सन्दर्भ में महाकवि पुष्पदन्त की भाषा ने महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है। काव्यकार की काव्य-साधना मूलतः भाषा की साधना का ही उदात्त रूप है। कोई भी कृति अपनी भाषिक सबलता के कारण ही चिरायुषी होती है। णायकुमारचरिउ' भी अपनी भाषिक प्रौढ़ता के साथ ही काव्यशास्त्रोपयोगी साहित्यिक तत्त्वों के सुचारु और सम्यक् विनियोजन के कारण ही कालजयी काव्य के रूप में चिरप्रतिष्ठ बना हुआ है। पी.एन. सिन्हा कॉलोनी, भिखना पहाड़ी पटना - 800006

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