Book Title: Apbhramsa Bharti 1999 11 12
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

View full book text
Previous | Next

Page 56
________________ अपभ्रंश भारती - 11-12 अक्टूबर - 1999, अक्टूबर - 2000 43 अपभ्रंश के करकण्डचरिउ में अभिव्यक्त धार्मिक अभिव्यञ्जना डॉ. राजीव प्रचण्डिया 'चरितकाव्य' साहित्य की एक सशक्त विधा है। जैन चरितकाव्यों में मुनि कनकामर द्वारा अपभ्रंश भाषा में रचित 'करकण्डचरिउ' एक उत्कृष्ट कोटि का काव्य है जो सांसारिक दुःखों में उलझे हुए पतित जीवन को आध्यात्मिक उन्नति/आत्मोत्थान की ओर ले जाने में प्रेरणास्रोत रहा है। यह 'चरिउकाव्य' व्यक्ति को उसके द्वारा किए गए शुभ-अशुभ कर्मों के लेखे-जोखे का अहसास दिलाता है ताकि भौतिक-अभौतिक संघर्षों-विवादों से ऊपर उठकर मनुष्य समदर्शी-समभावी हो सके अर्थात् सुख-दुःख से उसे सदा-सदा के लिए छुटकारा मिल सके। वह शाश्वत आनन्द-तृप्ति की परिधि को स्पर्श कर सके। निश्चय ही दस परिच्छेदों/संधियों में रचा, छोटी-बड़ी नौ अवान्तर-कथाओं से सुसज्जित यह चरिउ आत्मकल्याण तथा लोककल्याण का सुन्दर समन्वय है। यह भटके हुए प्राणी को सही दिशा दर्शाता है। इसमें नायक करकण्ड राजकीय परम्परा से सम्बन्धित है। उसमें असाधारण मानवीय गणों का सामञ्जस्य है। जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त उसने एक आदर्श जीवन का उदाहरण प्रस्तुत किया है। अपने प्रारम्भिक जीवन से लेकर प्रौढ़ावस्था तक नाना प्रकार के संकट, अन्तराय और व्यवधानों से जूझता हुआ तथा सभी प्रकार की परिस्थितियों का सामना करते हुए कवि मुनि कनकामर ने उसे अभूतपूर्व

Loading...

Page Navigation
1 ... 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114