Book Title: Apbhramsa Bharti 1999 11 12
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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अपभ्रंश भारती - 11-12
निष्कर्षतः उपर्युक्त विवेचन एवम् विश्लेषण से स्पष्ट हो जाता है कि अपभ्रंश साहित्य का पृष्ठाधार बहुआयामी है। इसके अध्ययन एवम् विश्लेषण से नये-नये तथ्यों के उद्घाटन के साथ-साथ साहित्य तथा संस्कृति की कई परतें भी खुलती जाती हैं । गहराई में बैठकर देखने पर आँख खोल देनेवाली छवियाँ और अमूल्य निधियाँ भी उपलब्ध होंगी।
1. डॉ. नामवर सिंह, हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग, पृ. 179, लोक भारती प्रकाशन,
इलाहाबाद। 2. अपभ्रंश काव्यत्रयी की संस्कृत भूमिका से उद्धृत। 3. जयचंद विद्यालंकार, इतिहास प्रवेश, पृ. 178, सरस्वती प्रकाशन मन्दिर, इलाहाबाद। 4. डॉ. रमेश मजूमदार, हिस्ट्री ऑफ बेंगाल, भाग-1, पृ. 420-421 । 5. हरिवंश कोछड़, अपभ्रंश साहित्य, पृ. 46, भारती साहित्य मन्दिर, फव्वारा-दिल्ली। 6. हजारीप्रसाद द्विवेदी, हिन्दी साहित्य की भूमिका, पृ. 224। . 7. गौरीशंकर ओझा, मध्यकालीन भारतीय संस्कृति, पृ. 27, हिन्दुस्तानी एकेडेमी, प्रयाग सन्
19281 8. वही, पृ. 371 9. डॉ. नामवर सिंह, हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग, पृ. 289, लोक भारती प्रकाशन
इलाहाबाद। 10. सी.वी. वैद्य, हिस्ट्री ऑफ मिडीवल हिन्दू इण्डिया, भाग-2, पृ.183, ओरियन्टल बुक
सप्लाइंग एजेन्सी, पूना, सन् 1924 । 11. डॉ. रामगोपाल शर्मा 'दिनेश', अपभ्रंश भाषा का व्याकरण और साहित्य, पृ. 71,
राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, जयपुर। 12. वही, पृ. 211 13. डॉ. नामवर सिंह, हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग, पृ. 240, लोकभारती प्रकाशन,
इलाहाबाद।
प्रवक्ता-हिन्दी विभाग खन्ना बिल्डिंग के पीछे, शुगर फैक्ट्री गली, म. न. 333, सुभाष नगर, बरेली (यू. पी.)