Book Title: Apbhramsa Bharti 1999 11 12
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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अपभ्रंश भारती
होती है। यदि " कृति आत्मनिवेदनात्मक या आत्म-कथात्मक हो तथा यदि वह आत्मनिष्ठ शैली में प्रस्तुत की गई हो तो उसमें उसके कर्ता के व्यक्तित्व का स्पष्ट चित्र अंकित पाया जाता है।" यदि वह परम्परागत कथात्मक हो, कथनात्मक या वर्णनात्मक हो, तो एक दृष्टि से कर्ता के व्यक्तित्व के प्रतिबिंबित हो जाने की गुंजाइश उसमें कम होती है, फिर भी कोई भी कलाकृति परम्परागत सूत्रों के आधार पर विरचित प्रबंधकाव्यात्मक कृति भी अपने निर्माता के व्यक्तित्व
प्रभाव से पूर्णत: मुक्त रह ही नहीं सकती। स्वयंभू रचित "पुणु अप्पणउं........' " वाली उक्ति के आधार पर कहा जा सकता है कि उनके 'पउमचरिउ' के अंदर उनकी आत्माभिव्यक्ति हुई है। 2
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तुलसीदास 'स्वांतः सुखाय' की भावना से अभिभूत होकर 'रामचरितमानस' की रचना हेतु प्रवृत्त होते हैं ।
स्वयंभू तथा तुलसी दोनों ही आत्मसुख को दृष्टि में रखकर काव्यसृजन हेतु प्रेरित होते हैं । दोनों ही कवियों का यह आत्मसुख कालांतर में लोकसुख में परिवर्तित हो गया ।
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सहायक आधारभूमि - स्वयंभू ने पूर्ववर्ती कवियों में मात्र चतुर्मुख के प्रति आभार प्रकट किया है परन्तु चतुर्मुख का साहित्य अनुपलब्ध होने के कारण यह निष्कर्ष निकालना असंभव है कि स्वयंभू ने 'पउमचरिउ' के सृजन में चतुर्मुख से किस प्रकार प्रेरणा तथा सहायता ग्रहण की ? स्पष्टरूप से स्वयंभूकृत 'पउमचरिउ' पर विमलसूरिकृत 'पउमचरियं' का प्रभाव परिलक्षित होता है। स्वयंभू अपने शब्दों में रामकथा के उद्भव तथा विकास को शब्दांकित करते हुए कहते हैं कि परम्परापोषित तथा दीर्घगामी रामकथा को उन्होंने 'बुद्धिएँ अवगाहिय' ग्रहण किया । स्पष्ट है कि स्वयंभू ने पारम्परिक रामकथा का अनुसरण अवश्य किया है परंतु अपनी बुद्धि से । अर्थात् पारम्परिकता के साथ ही नवीनता एवं मौलिकता को भी समायोजित किया है। स्वयंभू ने प्राकृत में रचित विमलसूरिकृत 'पउमचरिय' तथा संस्कृत में रचित 'पद्मपुराण' को ही मुख्यरूप से
आधारग्रंथ बनाया ।
रामचरितमानस के प्रारम्भ में ही तुलसीदास ने मानस की सहायक आधारभूमि का उल्लेख करते हुए कहा है “नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद् रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि।'' तुलसीदास ने स्पष्ट रूप से उन समस्त स्रोतों के प्रति आभार प्रदर्शित किया है जिनसे 'मानस के सृजन हेतु सहायक दिशा प्राप्त हुई। वैसे मानस के सहायक आधारग्रंथों में वाल्मीकि रामायण, अध्यात्मरामायण, श्रीमद्भागवत, हनुमन्नाटक तथा प्रसन्नराघव इत्यादि मुख्य 1
'पउमचरिउ' तथा 'रामचरितमानस' की कथा का क्रमबद्ध तुलनात्मक विवेचन 'पउमचरिउ' की रामकथा पाँच काण्डों या सर्गों में विभक्त है, ये सर्ग हैं -
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1. विद्याधरकाण्ड
3. सुंदरकाण्ड
5. उत्तरकाण्ड
2. अयोध्याकाण्ड
4. युद्धकाण्ड