Book Title: Apbhramsa Bharti 1999 11 12
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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की झड़ी-सी लगा दी है। अनेक प्राकृत उपमानों द्वारा कवि ने सौन्दर्यतत्त्व की व्यापकता को उजागर किया है। काव्य-कला एवं भाव-सौन्दर्य की दृष्टि से यह काव्य किसी भी समकालीन शृंगार-काव्य से कम नहीं है।"
"नारी-सौन्दर्य की विराटता को कवि ने अनेक उपमानों से सुशोभित किया है।"
"मर्यादित एवं सात्विक शृंगार-चित्रण के द्वारा कवि रोडा ने अपनी परिष्कृत अभिरुचि का ही परिचय दिया है। काव्य-कला की दृष्टि से यह भाषाकाव्य अतुलनीय है। इसमें कवि ने तत्कालीन लोक-अभिरुचि को भी अत्यन्त परिष्कृत ढंग से प्रस्तुत किया है।"
"अपभ्रंश साहित्य का सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में बहुत ऐतिहासिक महत्त्व है।"
"अपभ्रंश-साहित्य न केवल अपने परवर्ती साहित्य को अनेक विधि प्रभावित करने के कारण ही मूल्यवान् है, अपितु अपनी मौलिक उद्भावना, सौन्दर्य-चेतना, कल्पना के मूर्त आकलन, नव-नव अप्रस्तुत-विधान, छन्दोनुशासन, मनोहारी बिम्ब, विधायिनी कुशलता, कथानक-रूढ़ियों के प्रयोग तथा नीतिपरक मधुरता की दृष्टि से भी प्रभूत समृद्धशाली है। इसके रचयिता जैन-मुनि और आचार्य यद्यपि वीतरागी महात्मा थे, तथापि उनकी कारयित्री प्रतिभा ने अपनी उर्वर कल्पना-शक्ति के सहारे जो बिम्ब उभारे हैं, जो सौन्दर्य-सृष्टि की है, वह बेजोड़ है। लोक में रहकर भी वे अलौकिक भावना से संपृक्त बने रहे और वीतरागी होने पर भी लोकाचारों, लोक-व्यवहार तथा लोकानुभूतियों से अछूते नहीं रहे । लोक-जीवन और जगत् के इसी प्रसंग-संग ने इनकी काव्य-सर्जना को अनूठा बना दिया है, महिमामंडित कर दिया है । जहाँ उसमें सहजता-सरलता है वहाँ वक्रता का भी सौन्दर्य है। जहाँ लोक-जीवन की मधुर अभिव्यक्ति हुई है वहाँ आध्यात्मिकता का भी सरस प्रवाह है। जहाँ वस्तु-चित्रण में एक आकर्षण है वहाँ नूतन उद्भावनाओं में भी सौन्दर्य की सृष्टि हुई है। जहाँ अप्रस्तुत-योजना में उपमानों के प्रयोग, से इनके सटीक सौन्दर्य-बोध का परिचय मिलता है वहाँ आन्तरिक भावों का भी सहज सौन्दर्य मन को लुभाता है। कहीं नख-शिख शृंगार का सजीव गत्यात्मक सौन्दर्य है, तो कहीं मानवीकरण के प्रयोग से प्रकृति चैतन्य हो उठी है। इस प्रकार अपभ्रंश के इन कवियों का सौन्दर्य-चित्रण अद्वितीय और कलात्मक ऐश्वर्य से परिपूर्ण है। ___ "अपभ्रंश साहित्य का पृष्ठाधार बहुआयामी है। इसके अध्ययन एवम् विश्लेषण से नयेनये तथ्यों के उद्घाटन के साथ-साथ साहित्य तथा संस्कृति की कई परतें भी खुलती जाती हैं।'' “समग्र रूप में यह साहित्य उस युग के जातीय नवोन्मेश का प्रतिनिधि होकर ऊपर
उठा।"
जिन विद्वान लेखकों ने अपने महत्त्वपर्ण लेखों से इस अंक का कलेवर बनाने में सहयोग दिया है उन सभी के हम आभारी हैं।
संस्थान समिति, सम्पादक मण्डल एवं सहयोगी कार्यकर्ताओं के भी आभारी हैं । मुद्रण हेतु जयपुर प्रिन्टर्स प्रा. लि. जयपुर धन्यवादाह है।
डॉ. कमलचन्द सोगाणी
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