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अपश्चिम तीर्थकर महावीर - 18 अर्द्धपण, पादपण, अष्टभाग पण, रौष्यभाषक और धरण आदि-आदि सिक्के प्रचलित थे। सोने, चांदी एवं तांबे की मुद्राएं प्रचलित थीं।" मनोरंजन की पर्याप्त सामग्रियां उस समय भी उपलब्ध थीं। नाट्यशालाएं आदि चरमोत्कर्ष पर विद्यमान थीं। इस प्रकार आर्थिक सम्पन्नता परिपूर्ण रूप से दृष्टिगोचर होती थी। ऐसे उस काल में भगवान् महावीर की आत्मा महारानी त्रिशला के गर्भ में अवतरित हुई।
संदर्भः क्षत्रियकुण्ड अध्याय 2
(क) आवश्यक नियुक्ति-अवचूर्णि; श्री भद्रबाहु कृत नियुक्ति; श्री हरिभद्र कृत वृत्ति अनुसार; श्री ज्ञानसागरसूरि कृत विरचित; प्रथम भाग; प्रका. देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार; सन् 1965; पृ. 241 (ख) आचारांग सूत्र; आचार्य शीलांक वृत्ति; द्वितीय श्रुत स्कन्ध; वही; पृ.
(ग) बालचन्दजी श्रीश्रीमाल; तीर्थंकर चारित्र; भाग 2 प्रकाशक; जैन हितेच्छ श्रावक मण्डल, रतलाम; पृ. 184-185 (घ) डा. नरेन्द्र भानावत; भगवान् महावीर आधुनिक संदर्भ में; प्रका. अ. भा. साधुमार्गी जैन श्रावक संघ, बीकानेर; सन् 1974; पृ. 2 (ड) यशपाल जैन तीर्थंकर महावीर; प्रका. मार्तण्ड उपाध्याय, सस्ता साहित्य मण्डल, दिल्ली; प्रथमावृत्ति; सन् 1957; पृ. 8 (च) कल्पसूत्र; लक्ष्मीवल्लभ उपाध्याय विरचित कल्पद्रुम आदि टीकाओं का हिन्दी रूपान्तर; पृ. 93 (छ) K.C. Jain;Lord Mahavira and his Times; Motilal
Banarsidas, Delhi; 1974; page-34 2. . . (क) आचारांग; आचार्य शीलांकवृत्ति; द्वितीय श्रतुस्कन्ध; वही; अध्ययन
15; चूलिका 3; पृ. 422 (ख) सम्पा. डॉ. नरेन्द्र भानावत; भगवान् महावीर आधुनिक संदर्भ में; खण्ड 1-लेख ज्योति पुरुष महावीर; लेखक उपाध्याय मुनि; वही; पृ.
16
(ग) महापुराण अन्तर्गत उत्तर पुराण; लेखक गुणभद्राचार्य, अनुवादक पंडित लालारामजी जैन; प्रका. जैन ग्रन्थ प्रकाशक कार्यालय, इन्दौर; वि. सम्वत् 1975: पृ. 605 (ET) K.C. Jain, Lord Mahavira and his Times; Motilal