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अपश्चिम तीर्थंकर महावीर - 53
सर्वज्ञ, सर्वदर्शी त्रिकालज्ञ भगवान् ऋषभदेव गन्धहस्ती के समान विचरण कर रहे थे। ग्रामानुग्राम विहरण करते हुए भगवान् ऋषभदेव विनीता नगरी पधारे। भरत चक्रवर्ती को सूचना मिली कि भगवान् पधारे हैं। वे भगवान् के दर्शन, वन्दन, प्रवचन श्रवण करने हेतु उद्यान में गये। प्रभु ने भविष्य में होने वाले तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलदेव, और वासुदेव आदि के बारे में उपदेश फरमाया। प्रवचन श्रवण कर श्रद्धावनत भरत चक्रवर्ती ने भगवान् से पूछा, "भगवन् अभी यहां पर ऐसा कोई व्यक्ति है जो आप जैसा तीर्थंकर बनेगा?"
प्रभु ने फरमाया, "हां भरत, तुम्हारा पुत्र मरीचि, जो अभी त्रिदण्डी संन्यासी है, वह इस अवसर्पिणी काल का चौबीसवां तीर्थंकर बनेगा। साथ ही वह मरीचि पोतानपुर नगर में पहला वासुदेव तथा विदेह क्षेत्र की मूकापुरी नगरी में प्रियमित्र नामक चक्रवर्ती होगा।"
___अच्छा भगवन्, आपने बहुत सुन्दर फरमाया है। जैसा आप फरमाते हैं, वैसा ही ठीक है। भगवन्, मैं अब मरीचि के पास जाता हूं। इस प्रकार भगवन् को कहकर भरत चक्रवर्ती स्वयं चलकर मरीचि के पास पहुंचे।
तीन बार तिक्खुतो से आदक्षिणा-प्रदिक्षणा की। फिर मरीचि से कहा- मरीचि! भगवान् ऋषभदेव ने मुझे बतलाया है कि तुम इस अवसर्पिणी के चौबीसवें तीर्थंकर बनोगे। साथ ही, उससे पहले पोतानपुर में त्रिपृष्ठ नामक प्रथम वासुदेव तथा मूकापुरी नगरी में प्रियमित्र नामक चक्रवर्ती बनोगे। मैंने तुम्हें जो आज वन्दन किया है, वह संन्यासी हो, इस कारण नहीं किया, क्योंकि मैं जिनधर्म के विपरीत आचरण करने वाले को न साधु मानता हूं, न वन्दन करता हूं। लेकिन तुम भावी तीर्थंकर हो, इसलिए तीर्थंकर भगवान् के गुणों के प्रति अनन्य अनुराग होने से मैंने तुमको वन्दन किया है। ऐसा कहकर भरत चक्रवर्ती वहां से लौट जाते हैं।
भरत चक्रवर्ती के वाक्यों का स्मरण करता हुआ मरीचि नृत्य करता हुआ- पोतानपुर में पहला वासुदेव फिर विदेह क्षेत्र की मूका नगरी में ........... चक्रवर्ती और उसके पश्चात् मैं ............. मैं ....... ..... चरम तीर्थंकर ओह! कितना गौरवमय मेरा कुल है। मैं ...