Book Title: Apaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Author(s): Akhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
Publisher: Akhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
View full book text
________________
4.
7.
अपश्चिम तीर्थंकर महावीर - 208 (क) सर्वतोभद्रा तु दशसु, दिक्षु प्रत्येकमहोरात्र कायोत्सर्ग रूपा अहोरात्र दशक प्रमाणेति।
स्थानांग; टीका अभयेदव सूरि; प्रथम भाग; पत्र 5-2 (ख) आवश्यक चूर्णि, मलयगिरि वृत्ति; पृ. 288 (ग) आवश्यक हरिभद्रीय; पृ. 215 (घ) महावीर चरियं (गुणचन्द्र); 7/225 (क) आवश्यक चूर्णि; जिनदास; पृ. 300 (ख) त्रिषष्टि श्लाका पु. चा.; वही; पृ. 76 आणंदरस गाहावतिस्स घरे बहुलियाए दासीए महाणसिणीए भायणाणि खणीकरेंतीए दोसीणं छड्डेउकामाए सामि पविट्ठो, ताए भन्नति-किं भगवं! एतेण अहो? सामिणापाणी पसारितो, वाए परमाए सद्धाए दिन्नं, पंच दिव्वाणि, मत्थओ धोओ, अदासीकत्ता। (क) आवश्यक चूर्णि; जिनदास; पृ. 300-01 (ख) आवश्यक मलयगिरि वृत्ति; पृ. 288 दढ़भ्रमी वहुमेच्छा पेढालग्गाम मागतो भगवं । पोलासचेइयंमी ठितेगराई महापडिमं; 497 (क) आवश्यक चूर्णि; जिनदास; पृ. 301 (ख) आवश्यक मलयगिरि वृत्ति; पृ. 288 सभाएं पांच हैं1. सुधर्मा सभा 2. उपपात सभा 3. अभिषेक सभा 4. आलंकारिक सभा 5. व्यवसाय सभा (ठाणांग 51) इनमें सुधर्मा सभा श्रेष्ठ है। वहीं राज दरवार लगता है। देखिये सूत्रकृतांग; अध्ययन 6 भगवती सूत्र; अभयदेव सूरि; प्रथम भाग; शतक 3, उद्देशक 7; पृ. 158, आगमोदय समिति; सन् 1918 भगवती सूत्र; अभयदेव सूरि; वही; पृ. 175 (शतक 3, उद्देशक 2) त्रिषष्टि श्लाका पु. चा., वही; पृ. 76 हहतुद्धचित्तं आणदिए जाव सिरसावत्तं मत्थए अंजलि, कटु एवं बयासी-मोत्थुणं अरहंताणं जाव सिद्धिगतिणामधेयं ठाणं संपत्ताणं, णमोत्थुणं समणरस भगवतो महति महावीर वद्धमाण सामिररा गावकुलवरखडसयरस तित्थगररस सहरांबुद्धर, पुरिसोतमरस मुसिहरसा पुरिसवरपुंडरियरस पुरिरावरगंव्वहत्थिरला, अभयदयरस मारकर गंगावितुकामाल, बंदामिण भगवंतं तिलोगी तत्थ गत
8.
11.

Page Navigation
1 ... 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259