Book Title: Apaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Author(s): Akhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
Publisher: Akhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh

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Page 244
________________ अपश्चिम तीर्थकर महावीर - 2. गयी होगी। थोड़ी देर सेठ मूला के पास चला गया। मूला हंस-हं कर सेठ से वार्तालाप करने लगी। बातों-बातों में काफी समय निक गया। रात्रि हो गयी। नींद का समय आ गया। सेठ ने मूला से पूछाअरे क्या बात है, आज चन्दना कहां गयी? मूला ने चिढकर जबा दिया- मुझे क्या मालूम? कहीं चली गयी होगी इधर-उधर? त नौकरों से पुनः पूछा- क्यों चन्दना कहां गई? नौकर कुछ भी नह बोले। तब सेठ ने सोचा हो सकता है, कहीं नींद आ गई होगी। दूस दिन सेठ उठा। नित्य कर्म से निवृत्त होकर कार्य करने चला गया लौटकर आया। सेठ की नजरें चन्दना को ढूंढ रहीं थी लेकिन चन्दन उन्हें कहीं भी दिखाई नहीं दी। नौकरों से पूछा, कोई प्रत्युत्तर नई मिला । तीसरे दिन भी ऐसा ही हुआ। अब सेठ का पारा सीमा पार क चुका था। क्रोध से आकुल-व्याकुल होकर सेठ ने अपने सब नौकर से पूछा- अरे, चन्दना कहां है? लेकिन कोई जवाब नहीं मिला । त सेठ ने कहा- अरे बोलते नहीं हो, यदि आज तुमने नहीं बताया त सबकी छुट्टी कर दूंगा। तुम इतने गद्दार और नमकहराम बन रहे हो मैं तीन दिन से लगातार पूछ रहा हूं लेकिन कोई बोलते नहीं। तब से की बात श्रवणकर वृद्धा दासी ने चिन्तन किया कि अब मुझे ज्यादा दिन जीना नहीं है। यदि चन्दना का वृत्तान्त बताने पर मूला मार भी देर्ग तो कोई बात नहीं, लेकिन जिनका नमक खाया है उनका दुःख मिटान मेरा कर्तव्य है। ऐसा सोचकर उस वृद्धा ने सेठ से कहा- सुनिये सेट सा! सेठानीजी ने चन्दना के बाल काटकर, पैरों में बेड़ियां डालकर और दूर रहे हुए उस भंवरे में बन्द कर रखा है। सब नौकरों को विशेष आदेश दे रखा है कि कोई इस बात की जानकारी सेठ सा. को न दे अन्यथा उसे मृत्युदण्ड दिया जाएगा। मैंने आपका नमक खाया है अत मुझे मरना मंजूर है, परन्तु मैं इस सत्य को आपसे छिपा नहीं पाई अत श्रीचरणों में निवेदन कर दिया है | यह श्रवण करते ही सेठ का खून खौल गया। वह तुरन्त जिस कमरे में चन्दना को बन्द कर रखा था, वहां गया और दरवाजा खोला ! देखकर दंग रह गया। मस्तक मुंडा हुआ, बेड़ियों से जकड़ी हुई, भूखी, प्यासी, नेत्रों से झर-झर पानी बरसाती हुई चन्दना क्लान्त, खिन्न,

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