Book Title: Apaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Author(s): Akhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
Publisher: Akhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh

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Page 252
________________ अपश्चिम तीर्थंकर महावीर - 236 किया। इस कारण प्रथम देशना खाली गई। इसे आगमों में आश्चर्य रूप बतलाया है | उस तीर्थ में हाथी के वाहन वाले, कृष्णवर्ण वाले, बांये हाथ में चमर और दाहिने हाथ में नकुल धारण करने वाले मातंग नामक यक्ष और सिंह के आसनवाली नीलवर्णवाली, दो वाम भुजाओं में चंवर तथा वीणा एवं दो दाहिनी भुजाओं में पुस्तक और अभय को धारण करने वाली सिद्धायिका देवी- ये दोनों नित्य प्रभु के पास रहने वाले शासन रक्षक देव और देवी हुए35 | तीर्थंकर केवलज्ञान होने के एक मुहूर्तपर्यन्त वहीं रुकते हैं इसी कारण प्रभु भी एक मुहूर्तपर्यन्त वहां रुके और तदनन्तर लोकोपकार करने और भव्य जीवों को दिशाबोध प्रदान करने के लिए वहां से विहार कर दिया। असंख्य देवों से परिवृत भगवान मध्यम पावा की ओर पधारने लगे | संदर्भः साधनाकाल का द्वादश वर्ष, अध्याय - 22 गम्मो गमणिज्जो वा कराण गसए व बुद्धादी।। 1088 || जल पट्टणं च थल पट्टणं च इति पट्टणं भवे दुविहं । अइमाइ आगरा खलु, दोणमुहं जल थल पहेणं । ।1090 ।। बृहत्कल्प, लघु भाष्य; संघदासगण क्षमाश्रमण; भाग 2; श्री जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर; सन् 1936; पृ. 342-43 त्रिषष्टि श्लाका पुरुष चारित्र पुस्तक; वही; पृ. 88 दानामा (दानमय्या, दानमयी अथवा दानिमा) प्रव्रज्या उसे कहते हैं जिसमें दान देने की वृत्ति मुख्य हो। पूरण तापस की प्रवृत्ति में दान वृत्ति ही मुख्य थी। द्रष्टव्य- (क) भगवती सूत्र; अभयदेवसूरि; शतक 3, उद्देशक 2; पत्रांक 174 (ख) श्रीमद्भगवती सूत्र; पं वेचरदासजी; खण्ड 2/61 (ग) त्रिषष्टि श्लाका पु. चारित्र, पृष्ठ 88 में दानाम के स्थान पर प्रणामा प्रव्रज्या का उल्लेख है। भगवती सूत्र; अभयदेवसूरि; शतक 3 उद्देशक 2 (क) त्रिषष्टि श्लाका पु. चा.; पुस्तक 7; वही; पृ. 89-91 (ख) भगवती सूत्र; अभयदेवसूरि; शतक 3/उद्देशक 2 शक्रध्वज या मुख्य द्वार के दोनों कपाटों के अर्गला स्थान । अर्धमागधी

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