Book Title: Apaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Author(s): Akhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
Publisher: Akhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh

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Page 245
________________ अपश्चिम तीर्थकर महावीर - 229 उदासीन दिखाई दे रही है। उसे देखकर सेठ ने कहा- बेटी, तूं आश्वस्त बन, अब चिन्ता छोड़ दे। मैं तेरे लिए रसवती लाता हूं। ऐसा कहकर सेठ रसोईघर में पहुंचा। इधर-उधर बहुत ढूंढा, लेकिन कुछ नहीं मिला। एक छाजले के कोने में सूखे उड़द के बाकुले थे। सेठ ने उसे उठाया और जहां चन्दनबाला थी वहां आया । चन्दना को छाजला पकड़ाते हुए कहा- बेटी तूं यह खाना, इतने में तेरी बेड़ी तुड़वाने के लिए लुहार को लाता हूं। ऐसा कहकर सेठ बन्धन तुड़वाने के लिए चल पड़ा पर जिसके बन्धन स्वयंमेव टूटने वाले थे, उसके बन्धन कौन तोड़ सकता है। चन्दना बन्धन में फंसी अपने दुर्भाग्य पर रुदन कर रही है। ओह! दैव ने यह क्या किया? मैं राजघराने में जन्म लेने वाली और कैसी विपत्ति! पिता भाग गये, माता ने प्राण गंवाये, धनावह सेठ के यहां बिक गयी और आज यह दशा! पैरों में बन्धन हैं, तेले के पारणे में बाकुले मिले हैं। हा दैव! कर्मो की लीला भयंकर है। खैर, अब भी कोई अतिथि आ जाये तो उन्हें भोजन देकर तदनन्तर मैं कुछ खाऊँ। आंखों से अश्रु झर-झर झर रहे हैं और अतिथि का इन्तजार है। दृष्टि पड़ी द्वार पर । देखा वीर प्रभु पधार रहे हैं। देखते ही उठी लेकिन बेड़ी से जकड़ा एक पैर अन्दर और एक पैर बाहर, आंखों में आंसू, छाजले में बासी उड़द के बाकुले लेकर प्रभु से बोली- भगवन्, आज वासी उड़द के बाकुले ही मेरे पास हैं। ऐसा तुच्छ भोजन देने में मन संकुचित बन रहा है लेकिन द्वार पर आप आये, आप खाली कैसे लौट सकते हैं? आप महान हैं, मेरे पर अनुग्रह करके आप ये वाकुले ही भगवन् ग्रहण कर लीजिये। मेरा जीवन सफल हो जायेगा। भगवन् दुःखियारी का दुःख आप ही दूर कर सकते हैं। आंखों से धड़ाधड़ आंसू गिर रहे हैं और चन्दना प्रभु से प्रार्थना कर रही है। उसी समय द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव से अभिग्रह पूर्ण होता जानकर, प्रभु ने अपना हाथ आगे बढ़ाया और चन्दना ने वे बासी कुल्लाष बहरा दिये। पांच महीने और पच्चीस दिन के बाद प्रभु ने अन्न ग्रहण किया। आकाश में देवों ने अहोदान अहोदान की घोषणा की। वसुधारा की वृष्टि की। पांच दिव्य प्रकट हुए। चन्दना की बेडियां टूट गयीं और उनके स्थान पर सोने के घुघरू बन गये। केशराशि मस्तक पर पूर्ववत् सुशोभित हो उठी। चन्दना का गात्र

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