Book Title: Apaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Author(s): Akhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
Publisher: Akhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 249
________________ अपश्चिम तीर्थंकर महावीर 233 प्रभु की भक्ति करने आया और वन्दन - नमस्कार करके लौट गया । भगवान वहां से विहार करके छम्माति ग्राम पधारे। वहां गांव के बाहर कायोत्सर्ग करके ध्यानस्थ बनकर स्वयं की साधना में तल्लीन बन गये । प्रभु आत्मसाधना में समालीन हैं। इधर एक ग्वाला बैलों को लेकर प्रभु के पास आता है। प्रभु को देखकर कहता है, तुम मेरे इन बैलों का खयाल रखना, मैं गायें दुहकर आता हूं। प्रभु तो ध्यान में निमग्न थे और ग्वाला अपने बैलों को प्रभु के समीप छोड़कर गायों को दुहने चला गया। वे बैल वहां पर घास चरने लगे और चरते -चरते दूर जंगल में चले गये। थोड़ी देर पश्चात् वह ग्वाला आया और देखा कि बैल वहां से गायब थे। उसने प्रभु से पूछा- अरे अधम ! मेरे बैल कहां हैं? प्रभु मौन थे। तब उसने पुनः पूछा- अरे ! तूं बोलता क्यों नहीं? क्या तुझे मेरी बात सुनाई नहीं देती? तेरे ये कानों के छिद्र क्या व्यर्थ हैं? ऐसा कहने पर भी भगवान कुछ नहीं बोले तब उसे अत्यन्त क्रोध आया और पूर्वभव का वैर जागृत हो गया। यह वही ग्वाला था जिसको शय्यापालक के भव में प्रभु महावीर की आत्मा ने उबलता हुआ शीशा कानों में डलाया था। उसी पूर्व वैर से वह दो काश की शलाकाएं लाया और प्रभु के दोनों कानों में बींध दी। बाहर जो शलाका का भाग दिख रहा था उसे देखकर शलाका को कोई निकाल देगा, ऐसा सोचकर उस ग्वाले ने उस बाहर दिखने वाले शलाका के हिस्से को छेद दिया। अब कोई यह जान नहीं सकता था कि प्रभु के कान में शलाका डाली हुई है। इस प्रकार माया - मिथ्यात्व से उसने प्रभु को भयंकर संताप पहुंचाया लेकिन प्रभु तनिक भी कम्पित नहीं हुए । वहां से विहार करके प्रभु मध्यम पावा पधारे। पारणा करने हेतु प्रभु सिद्धार्थ वणिक् के यहां पधारे। उसने भक्तिभावपूर्वक प्रभु को आहारादि दिया । उस सिद्धार्थ के घर पर उसका मित्र खरक वैद्य आया हुआ था । उसने प्रभु के देह का अवलोकन किया और मित्र से कहासिद्धार्थ ऐसा लगता है, देवार्य के शरीर में कोई शल्य है जिसकी भयंकर वेदना से इनका दिव्य मुख-मण्डल ग्लान हो रहा है। त सिद्धार्थ ने कहा- आप देखो, कहां पर शल्य है? खरक वैद्य ने बहुत ही सूक्ष्मता से प्रभु के देह का नख-शिख अवलोकन किया और सिद्धार्थ

Loading...

Page Navigation
1 ... 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259