Book Title: Apaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Author(s): Akhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
Publisher: Akhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh

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Page 239
________________ अपश्चिम तीर्थंकर महावीर 223 की स्थिति नहीं होने से पुनः लौट जाते " । इस प्रकार निरन्तर भिक्षारहित होने पर भी प्रभु का मुखकमल तो अम्लान बना रहता था लेकिन लोगों के मन में अत्यन्त खेद और लज्जा होने लगी कि इतना लम्बा अर्सा हो गया लेकिन हमारी नगरी में भगवान का पारणा नहीं हुआ । अब क्या करें? क्या नहीं करें। इस प्रकार किंकर्तव्यविमूढ़ बने लोग आकुल-व्याकुल रहने लगे । इधर कुछ समय पहले की बात है कि राजा शतानीक और चम्पापुर नरेश दधिवाहन परस्पर शत्रुता रखते थे । एक दिन राजा शतानीक ने अचानक अपने विशाल सैन्य समूह सहित चम्पापुर नरेश दधिवाहन पर आक्रमण कर दिया। अचानक आक्रमण होने से सुरक्षा करना कठिन होने से राजा दधिवाहन वहां से भागा तब शतानीक राजा ने घोषणा करवाई कि चम्पानगरी स्वामीरहित है इसलिए जिसको जो लूटना है लूटो । तब सैनिकों ने चम्पा लूटना प्रारम्भ किया। नगर में भयंकर विप्लव मच गया। कोई किधर भागने लगा, कोई किधर । चम्पापुर के लोग घर बार छोड़कर ऐसे भाग रहे हैं मानो भूकम्प आ ` गया हो। एक राजा के चले जाने से नगर ऐसे असुरक्षित हो गया मानो नगर के प्राण ही चले गये हों। इसी भगदड़ में एक सुभट राजा के अन्तःपुर में चला गया। वहां उसने अत्यन्त सौम्य स्वरूपा, कमनीय अंगोपांग वाली, कमलनयनी महारानी धारणी और रूप और लावण्य की साक्षात् प्रतिमर्ति, श्याम केशराशि से सुसज्जित, रक्तिम अधरवाली, प्रलम्ब भुजावाली, नवयौवना राजकुमारी वसुमति को देखा। देखकर उसके रूप पर मुग्ध बन गया । वह धारणी से बोला- अहो ! आज तुम बड़े ही सौभाग्य से मुझको मिली हो । अब मैं तुम्हें अपनी प्राणप्रिया बनाकर रहूंगा। उत्तम वंशजा शीलमूर्ति धारणी महारानी के लिये ये वचन बड़े असह्य हो गये । अरे! रे! ऐसे शब्दों को सुनकर भी मैं जीवित हूं। अरे प्राणों निकल जाओ जीना.. जीना.. .. जीना करती हुई धड़ाम से गिर पड़ी और वहीं पर महारानी के प्राणपंखेरू उड़ गये"। उसे तत्क्षण मृत्यु प्राप्त देखकर सैनिक का मन पश्चात्ताप से भर गया। ओह! मैं कितना नराधम निकला कि ऐसी सती-साध्वी का

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