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अपश्चिम तीर्थंकर महावीर - 63 प्रजा, उसका पति प्रजापति, ऐसा नाम रख दिया।
वह प्रजापति राजा अपनी धर्मप्रिया मृगावती के साथ भोग भोगता हुआ समययापन कर रहा था। एक दिन महारानी मृगावती ने सात महास्वप्न देखे। जिनके परिणामस्वरूप समय आने पर सुन्दर, सुकुमार वासुदेवकुमार को जन्म दिया। यह इस अवसर्पिणी का प्रथम वासुदेव था । यह भगवान् महावीर का ही जीव था जो महाशुक्र देवलोक से आकर उत्पन्न हुआ। उस कुमार की पीठ में तीन पांसुलियां होने से उसका नाम त्रिपृष्ठ वासुदेव रखा गया। यह भगवान् महावीर का अठारहवां भव था ।
अपरिमित बलशाली त्रिपृष्ठ वासुदेव राजप्रागंण में बड़े होने लगे। 80 (अस्सी) धनुष प्रमाण शरीर की ऊँचाई वाले वे त्रिपृष्ठ वासुदेव अपने भ्राता बलदेव के साथ क्रीड़ा आदि करते थे। सर्व कलाओं में प्रवीण बनकर, यौवनप्राप्त वे त्रिपृष्ठ वासुदेव अपने पराक्रम से विख्यात बन गये।
इधर पूर्वभव का वैरी विशाखनंदी का जीव अनेक भवों में भ्रनण करता हुआ तुंग पर्वत पर केसरी सिंह बन गया। वह शंखपुर प्रदेर में उपद्रव करने लगा। उसी समय अश्वग्रीव नामक प्रतिवासुदेव त्रिपृष्ठ का पिता प्रजापति उसी का माण्डलिक राजा था। अक्ट एक नैमित्तिक से पूछा- मेरी मृत्यु किसके द्वारा होगी? न्न : नैमित्तिक ने कहा कि जो आपके चण्डवेग दूत को पीटेगी पर रहे हुए केसरी सिंह को मारेगा उसी व्यक्ति र न्यु होगी। मृत्यु........ जिसका नाम श्रवण कर
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त हैं। अश्वग्रीव ने चिन्तन किया, ऐसा कौन है,
है ध्यान एकाग्र किया, स्मरण हो आया लि प्र -कुत्र, बड़े शूर, वीर, पराक्रमी और बलवान हैं। वे है ई- है, उनकी परीक्षा करनी चाहिए।
राजा अश्वग्रीव ने नैमित्तिल केल्यानुसार हेतु अपने चण्डवेग दूत को प्रजापति के पास
अनेक सहित राजसभा में बैठा संगीत के न्यु
की भाव-भंगिमाओं से ओतप्रोत बन
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