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अपश्चिम तीर्थंकर महावीर - 57_ रखा गया। कुमार विशाखनन्दी राजघराने में बड़ा होने लगा।
राजा विश्वनंदी के एक लघु भ्राता था, विशाखभूति । अपने उस लघु भ्राता को योग्य जानकर उन्हें युवराज पद दे दिया। युवराज विशाखभूति अपनी युवरानी धारिणी के साथ सहवास करते हुए क्षणभंगुर सुखों में तल्लीन थे। युवरानी धारिणी ने भी यथासमय एक शिशु का प्रसव किया, जिसका नाम विश्वभूति रखा गया। आकर्षक नेत्र, सुदीर्घ भौंहें, विशाल भाल, सुकुमार देह-यष्टि वाला कुमार देव-पुत्र-सा लग रहा था। राजघराने में सुसंस्कारों से पोषित, शौर्य का पावन प्रतीक वह बाल-शिशु अनवरत यात्रा कर रहा था।
शनैः-शनैः यौवन की देहली पर पैर रखा। परिणय बन्धन में आबद्ध करने योग्य जानकर माता-पिता ने समानवय, समान रूप-लावण्य वाली तरुणियों के साथ प्रणय सूत्र में बांध दिया। विवेकशीला तरुणियों के साथ क्रीड़ा करता हुआ विश्वभूति आनन्द-सरिता में स्वयं को निमग्न रखता था। पुष्पों के उद्यान में जाकर रमणियों सहित क्रीड़ा करना उसे अत्यन्त प्रिय था। वह पुष्पकरंदक राजउद्यान में अन्तेपुर-रानियों सहित क्रीड़ा करने जाया करता था। अपने अद्वितीय पराक्रम से यशःश्री का वरण करने वाला प्रजावत्सल बन गया। उसे देखने के लिए दर्शकों के अपलक नेत्र सदैव राहें निहारते थे। अभिनव आशापुंज विश्वभूति अब जन-विभूति बन चुका था।
एक दिन मनभावन मौसम एवं उत्साह-परिपूर्ण मन वाला वह विश्वभूति क्रीड़ा हेतु पुष्पकरंदक उद्यान में पहुंचा। इधर राजपुत्र विशाखनंदी भी क्रीड़ा हेतु वहां आया। द्वारपाल से पूछा- क्यों, भीतर कोई है?
हां, कुमार। कौन?
राजकुमार विश्वभूति अपने अन्तःपुर सहित क्रीड़ा करने आये हैं। तब बाहर ही खड़ा हूं। विशाखनंदी ने कहा। विशाखनंदी बाहर खड़े हैं। इतने में महारानी की दासियां आती हैं। वे विशाखनंदी से- अरे! क्या बात है, आप राजउद्यान के बाहर खड़े हैं? भीतर कौन है?
भीतर विश्वभूति।