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5.
6.
7.
8.
9.
अपश्चिम तीर्थकर महावीर
(ग) जीवाजीवाभिगम; मलयगिरी; तृतीयप्रतिपत्ति; प्रका. देवचन्द
लालभाई ।
(क) जम्बद्वीप प्रज्ञप्ति; भाग 2; श्री घासीलालजी म. सा.; वही;
पृ.
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42
614-30
(ख) कल्पसूत्र श्री राजेन्द्रसूरि कृत बालावबोधिनी वार्ता; वही; पृ.
78-79
(क) जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति; श्री घासीलालजी म. सा. भाग 2; वही; पृ.
630-662
(ख) कल्पसूत्र; श्री राजेन्द्रसूरि कृत बालावबोधिनी वार्ता; वही; पृ.
80
(क) जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति; श्री घासीलालजी म. सा.: भाग 2; वही;
पृ.
662-664
(ख) कल्पसूत्र; श्री राजेन्द्रसूरि कृत बालावबोधिनी वार्ता, वही, पृ.80 (क) पदांगगुष्ठेत यो मेरुमनायासेन कंपयन् ।
लेभे नाम महावीर इति नाकालयाधिपात् पद्मचरित्र; रविषेणाचार्य कृतः पर्व 2; श्लोक 16 (ख) वामम य पायंगुट्टय कोडीए तो सलीलमह गुरुणा । तह चालिओ गिरीसो जाओ, जइ तिट्टयणक्खोहो । । चउप्पन्नमहापुरिसचरियं; आचार्य शीलांक: प्र. प्राकृत ग्रन्थ परिषद् वाराणसी 5; पृ. 271
(ग) आकम्पिओ य जेणं, मेरु अंगुट्टेएण लीलाए ।
तेणेह महावीरो, नामं सि कयं सुरिन्देहिं । ।
पउमचरियं; विमलसूरि; 2 / 26; प्राकृत ग्रन्थ परिषद् : वाराणसी 5; पृ.60
(घ) तीर्थंकर चारित्र; श्री बालचन्दजी श्रीश्रीमाल; भाग दो; वही; पृ. 188; यहां ज्ञातव्य है कि श्रीश्रीमालजी ने भी मेरु कम्पाने के कारण देवों द्वारा भगवान् का नाम महावीर रखा गया, ऐसा उल्लेख किया है । द्रष्टव्य पृ. 188
इस प्रकार कुल 8064 कलश होते हैं । प्रत्येक इन्द्र 64000 घड़ों से अभिषेक करते हैं। प्रत्येक तीर्थंकर के देवों द्वारा 250 अभिषेक होते हैं । अतः कुल मिलाकर एक करोड़ साठ लाख कलशों से अभिषेक होता है, जिसका विवरण इस प्रकार है :