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अपश्चिम तीर्थकर महावीर - 43
भवनपति के 20 इन्द्र, व्यन्तर के 32 इन्द्र, वैमानिक के दस इन्द्र, अढाई द्वीप के 132 चन्द्र-सूर्य, धरणेन्द्र-भूतानेन्द्र की 12 इन्द्राणी, व्यन्तर की चार इन्द्राणी, चमरेन्द्र की 10 इन्द्राणी, ज्योतिषी की चार इन्द्राणी, सौधर्म-ईशान की 16 इन्द्राणी, सामानिक देवों का एक, त्रायस्त्रिंशक देवों का एक, लोकपाल के 4, अंगरक्षक का एक, पर्षदा के देवों का एक, प्रजा देवों का एक, सात सेनाओं के देवों का एक- इस प्रकार कुल 250 अभिषेक होते हैं। प्रत्येक अभिषेक 64,000 कलशों का होता है। अतः 250x64000-31,60,00,000 कलशों से अभिषेक कार्यक्रम सम्पन्न होता है। प्रत्येक कलश 25 योजन ऊँचा एवं 12 योजन पोला होता है। द्रष्टव्यः कल्पसूत्र; राजेन्द्रसूरि कृत बालावबोधिनी वार्ता; वही; पृ. 80-81 जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति; युवाचार्य श्री मिश्रीलालजी म. सा.; आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर; सन् 1994; पृ. 297-307 आवश्यक सूत्र नियुक्ति–अवचूर्णि; प्रथम भाग; प्रका. देवचन्द लालभाई; सन् 1965; पृ. 265 (क) जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति; युवाचार्य श्री मिश्रीलालजी म. सा.; वही; पृ. 306-9
(ख) कल्पसूत्र; राजेन्द्रसूरि कृत बालावबोधिनी वार्ता; वही; पृ. 81 13. आवश्यक नियुक्ति-अवचूर्णि प्रथम भाग में इसका स्पष्टीकरण
करते हुए कहा है :शृङ्गाटकं शृङ्गारकाकृति पथयुक्तं त्रिकोणं स्थानं वाक, त्रिकं यत्र रथ्यात्रयं मिलति. चतुष्पथ समाहार:X, चत्वरं बहुरथ्यापातस्थानं,* चतुर्मुखं यस्माच्चतसृष्वपि दिक्षु पन्थानो निस्सरन्ति,+ महापथो राजमार्गः शेषः सामान्यः पन्थाः पथः वही; पृ. 200 (क) आचारांग; द्वितीय श्रुत स्कन्ध; वही; पृ. 421 (ख) जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति; युवाचार्य श्री मिश्रीलालजी म. सा.; वही; पृ. 308-11 (क) जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति; युवाचार्य श्री मिश्रीलालजी म. सा.; वही; पृ. 311 (ख) कल्पसूत्र; राजेन्द्रसूरि कृत बालावबोधिनी वार्ता; वही; पृ. 82
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