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अपश्चिम तीर्थंकर महावीर
विमान तैयार करके-"स्वामिनी का आदेश पूर्ण हुआ ।" चलिए
सभी ! सब चलने को तैयार होते हैं।
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भोगंकरा अपने चार हजार सामानिक देवों सपरिवार चार महत्तरिकाओं, सात सेनाओं, सात सेनापति देवों, सोलह हजार आत्मरक्षक देवों, अन्य अनेक देव-देवियों सहित विमान पर आरूढ़ होकर, भगवान् के चार अंगुल विमान को ठहराती हैं । सपरिवार नीचे उतरती हैं। उतर कर जहां त्रिशला क्षत्रियाणी थी, वहां पर आती हैं, फिर भगवान् एवं त्रिशला क्षत्रियाणी की तीन बार आदक्षिणा- प्रदक्षिणा करती हैं। फिर हाथ जोड़ कर त्रिशला महारानी से कहती हैं :
हे रत्नकुक्षिधारिके! सम्पूर्ण जगत् को दिशाबोध देने वाले, धर्मतीर्थ का प्रवर्तन करने वाले, लोकोत्तम तीर्थंकर भगवान् की माँ बनने का सौभाग्य आपको मिला है । आप धन्य हैं! पुण्यशालिनी हैं! कृतकृत्य हैं।
हम भगवान् तीर्थंकर का जन्म - महोत्सव मनाने के लिए आठ दिशाकुमारियां आई हैं। आप भयाक्रान्त मत होना। ऐसा कहकर ईशानकोण में जाती हैं । सुगन्धित वायु द्वारा एक योजन भूमि को सुगन्धित बनाती हैं। फिर संवर्तक वायु द्वारा सम्पूर्ण कूड़ा-कचरा, गन्दगी आदि को झाड़-बुहार कर परिमण्डल से बाहर कर स्वच्छ बना देती हैं। फिर मंगलगीत गाती हैं।
तत्पश्चात् ऊर्ध्वलोक वासिनी 9. मेघंकरा, 10. मेघवती, 11. सुमेधा, 12. मेघमालिनी, 13. सुवत्सा, 14. वत्समित्रा, 15. वारिषेणा, 16. बालाहिका ये आठ दिशाकुमारियां उसी प्रकार आसन कम्पायमान होने पर सपरिवार आती हैं। सुगन्धित जल की वृष्टि करती हैं। तत्पश्चात् घुटनों - पर्यन्त विपुल पुष्पों की वर्षा करती हैं। वातावरण सुगन्धित बनाती हैं और मंगलगीत गाती हैं ।
तदनन्तर रुचक कूट के पूर्व दिशा में रहने वाली आठ दिशाकुमारियाँ - 17. नन्दोत्तरा, 18. नन्दा, 19. आनन्दा, 20. नन्दिवर्धना, 21. विजया, 22. वैजयन्ती, 23. जयन्ती, 24 अपराजिता आती हैं। सघन शृंगार उपयोगी दर्पण हाथ में लेकर भगवान् एवं उनकी माँ के पूर्व दिशा में खडी होकर मंगलगीत गाती हैं।