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अपश्चिम तीर्थंकर महावीर - 17
वज्जिसंघ अपनी न्याय-प्रणाली के लिए प्रसिद्ध था । वज्जि के शासक 'यह चोर है, अपराधी है' ऐसा किसी को नहीं कहते थे लेकिन उस व्यक्ति को महामात्य को सौंप देते। महामात्य उसकी स्थिति जानकर अपराधी नहीं होता तो उसे छोड़ देते थे और अपराधी होने पर न्यायाध्यक्ष को सौंप देते थे। वह भी अपराधी होने पर सूत्राधार को दे देता। सूत्राधार यदि उसे निरपराधी पाता तो छोड़ देता, अपराधी होने पर अष्टकुलिक को सौंप देता । अष्टकुलिक सेनापति को, सेनापति उपराज को, उपराज राजा को दे देता था। राजा भी उसे निरपराधी जानता तो छोड़ देता और अपराधी होने पर 'प्रवेणिपुस्तक' अर्थात् दण्ड विधान के अनुसार दण्ड व्यवस्था करता। इस प्रकार वैशाली गणतंत्र राज्य की व्यवस्था बड़ी सुदृढ़ थी।
कुशीनारा और पावा में मल्लों का गणतंत्र राज्य था। इनमें आठ व्यक्ति प्रमुख थे। शासन का सम्पूर्ण कार्य संथागार के निर्णय के आधार पर होता था। इस प्रकार भगवान महावीर के समय गणतंत्र और राजतंत्र दोनों पद्धतियां विकसित थीं। इनमें परस्पर ईर्ष्या, द्वेष, दलबन्दी, संघर्ष आदि होते रहते थे।'
इतिहास के अवलोकन से ज्ञात होता है कि तत्कालीन आर्थिक स्थिति भी बड़ी सुदृढ़ थी। आज की तरह उस समय आर्थिक संकट व्याप्त नहीं था। लोग पशुपालन, खेती, विविध शिल्पकर्म और व्यापार करके अपना जीवनयापन करते थे। ब्याज व्यवस्था उस समय भी मौजूद थी। पाणिनी अष्टाध्यायी में मार्गशीर्ष में दिये जाने वाले ऋण को आग्रहाणयिक और संवत्सर के अन्त में दिये जाने वाले ऋण को सांवत्सरिक शब्द से सम्बोधित किया है। खेती का कार्य भी व्यापक रूप से होता था। उस समय भी अनाज थैलों में भरे जाते थे जिन्हें गोणी कहते और ढरकी को प्रवाणि कहते थे।
उस समय गृहनिर्माण कार्य मिट्टी, ईंट, लकड़ी और पत्थर द्वारा होता था। भवन व मकान कई मंजिले होते थे। सड़कें व गलियां, त्रिमार्ग, चौराहे आदि उस समय भी पाये जाते थे। व्यापार जल एवं स्थल से होता था। माल पशु ढोते थे। जलीय व्यापार नौकाओं द्वारा होता था। वाणिज्य शुल्क उस समय भी निर्धारित रहता था। पण,